Class 10th Sanskrit Subjective (संस्कृत) बिहार बोर्ड कक्षा 11 संस्कृत अध्याय 4 का अब्जेक्टिव प्रश्न पीडीएफ़ Bihar Board (Matric मैट्रिक) vvi Subjective in Hindi pdf
व्याघ्रपथिक कथा
1. ‘व्याघ्र पथिक कथा’ के आधार पर बतायें कि दान किसको देना चाहिए?
उत्तर- व्याघ्रपथिक कथा के आधार पर दान गरीबों को देना चाहिए धनवानों को नहीं, जिस प्रकार औषधि रोगियों के लिए होता है, निरोगी के लिए नहीं ।
2. व्याघ्रपथिक कथा को संक्षेप में अपने शब्दों में लिखें।
उत्तर – व्याघ्रपथिक कथा में लोभ के दुष्परिणाम का वर्णन है। इस कथा में किसी तालाब के किनारे एक बूढ़ा बाघ हाथ में कुश और सोने का कंगन लेकर उस मार्ग से आने जाने वालों से सोने का कंगन लेने का आग्रह करता है। एक लोभी पथिक उसको लेना चाहता है परन्तु लेने में उसे जान का खतरा महसूस होता है। उसके इस संदेह को दूर करने के लिए बाघ अपने धार्मिक ज्ञान का प्रमाण प्रस्तुत करता है। राही कंगन लेने के लिए सहमत हो जाता है। बाघ उसको तालाब में स्नान कर कंगन लेने को कहता है। राही स्नान करने के लिए तालाब में प्रवेश करता है। वह महाकीचड़ में फंस जाता है। राही को कीचड़ में फँसा देख बाघ उसके पास जाता है तथा उसको पकड़कर खा जाता है। इस प्रकार लोभवश राही अपनी जान गँवा देता है।
अतः कभी भी हिंसक जीव पर विश्वास और लोभ नहीं करना चाहिए।
3. ‘व्याघ्रपथिक कथा’ पाठ का मुख्य उद्देश्य क्या है?
उत्तर – व्याघ्रपथिक कथा’ पाठ का मुख्य उद्देश्य यह है कि हिंसक जीव अपने स्वभाव को नहीं छोड़ता है। यह रचना नारायणपंडित का है। कहानी के माध्यम से यह शिक्षा देते हैं कि दुष्टों की बातों पर लोभ में आकर उस पर विश्वास नहीं करना चाहिए। इस पाठ का मुख्य उद्देश्य मनोरंजन के साथ ज्ञान देना है।
4.”व्याघ्रपथिक कथा” पाठ का पाँच वाक्यों में परिचय दें।
उत्तर- ” व्याघ्रपथिक कथा” नारायणपण्डित द्वारा रचित ” हितोपदेश” नीतिकथाग्रंथ से संकलित है। इसमें लोभाविष्ट मनुष्य की दुर्दशा की चर्चा है। मनुष्य लोभ के चलते मान-सम्मान ही नहीं अपने प्राण तक गँवा बैठते हैं। कथाकार ने एक बाघ और लोभ से आकृष्ट व्यक्ति के द्वारा समझाने की कोशिश की है। इस कहानी से यह उपदेश मिलता है कि ठगों के चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए।
5.पथिक बूढ़े बाघ के द्वारा कैसे पकड़ा गया ?
उत्तर – बूढ़ा बाघ हाथ में सोने का कंगन लेकर सरोवर के किनारे बैठकर बोल रहा था । कोई इस कंगन को ले लो। लोभवश कोई पथिक सोचा। भाग्य से ही संभव है। बाघ ने तर्क दिया। मैं असहाय, दानी, नखदंतहीन हूँ। पथिक उसपर विश्वास कर स्नान करने के लिए सरोवर में गया । वहाँ कीचड़ में फँस गया। अंत में बाघ के द्वारा खा लिया गया ।
6. व्याघ्रपथिक कथा से हमें क्या शिक्षा मिलती है?
उत्तर- ‘व्याघ्रपथिक कथा’ नारायणपण्डित द्वारा रचित हितोपदेश ग्रंथ से उद्धृत है। इस कथा से हमें यह शिक्षा मिलती है कि लोभ के चलते जान को जोखिम में नहीं डालना चाहिए। लोभवश पथिक बूढ़े बाघ के जाल में फँसकर अपना जीवन नष्ट कर लेता है। बिना सोचे समझे कोई भी कार्य नहीं करना चाहिए। कहा भी गया है कि
अतिलोभी न कर्तव्यः लोभं नैव परित्यजेत् ।
अति लोभापि भूतस्य चक्रं भ्रमति मस्तके।
अर्थात् ज्यादा लोभ नहीं करना चाहिए। लोभ छोड़ना भी नहीं चाहिए। अति लोभ से ग्रसित व्यक्ति के सिर पर विपत्ति रूपी चक्र घूमता रहता है।
7. “जानं भारः क्रियां बिना ” यह उक्ति व्याघ्र पथिक कथा पर कैसे चरितार्थ होती है?
उत्तर – व्याघ्र पथिक कक्षा में नारायण पंडित हमें यह शिक्षा देते हैं कि दुष्टों की बातों पर थोड़ा-सा विश्वास नहीं करना चाहिए, क्योंकि हिंसक प्राणी अपना स्वभाव कभी नहीं छोड़ सकते, खतरा जानने के बावजूद यह लोभवश बाघ की बातों में आकर कीचड़ में फँस गया और बाघ के द्वारा पकड़ लिया गया।
8. नारायण पण्डित कौन थे? इन्होंने किस ग्रंथ की रचना की?’
उत्तर – संस्कृत साहित्य के प्रधान कथाकारों में नारायण पण्डित का स्थान शीर्षस्थ है। इन्होंने हितोपदेश नामक महान ग्रंथ की रचना की है। इसमें पशु-पक्षियों के माध्यम से नीतिपरक शिक्षात्मक बातें कही गयी है।
9. धन और दवा किसे देना उचित है?
उत्तर- धन धनिकों को देना व्यर्थ है, गरीबों को दिया गया धन सात्विक होता है। ठीक उसी प्रकार रोगियों का मित्र है, जो नीरोग है, उसके लिए दवा व्यर्थ है।
10. सोने के कंगन को देखकर पथिक ने क्या सोचा?
उत्तर- सोने के कंगन को देखकर पथिक ने सोचा कि भाग्य से ही ऐसा मिलता है। किन्तु यहाँ आत्मसंदेह है और आत्मसंदेह की स्थिति में कार्य नहीं करना चाहिए | अनिष्ट से इष्ट की प्राप्ति करने वाले लोगों की अच्छी गति नहीं होती है। विषयुक्त अमृत पीने से भी मृत्यु प्राप्त होती है। लेकिन सब जगह धनार्जन कार्य में संदेह ही रहता है। इसलिए जाँच कर लेना चाहिए ।
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