भूमिका – स्वामी विवेकानंद ने अपने देश के नवयुवकों को संबोधित करते हुए कहा था- ‘सर्वप्रथम हमारे नवयुवकों को बलवान बनना चाहिए । धर्म पीछे आ जाएगा ।’ स्वामी विवेकानंद के इस कथन से स्पष्ट है कि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का निवास संभव है और शरीर को स्वस्थ तथा हृष्ट-पुष्ट बनाने के लिए खेल अनिवार्य है ।
खेलों से लाभ — पाश्चात्य विद्वान पी० साइरन ने कहा है-‘अच्छा स्वास्थ्य एवं अच्छी समझ जीवन के दो सर्वोत्तम वरदान हैं। इन दोनों की प्राप्ति के लिए जीवन में खिलाड़ी की भावना से खेल खेलना आवश्यक है । खेलने से शरीर पुष्ट होता है, मांसपेशियाँ उभरती हैं, भूख बढ़ती है, शरीर शुद्ध होता है तथा आलस्य दूर होता है । न खेलने की स्थिति में शरीर दुर्बल, रोगी तथा आलसी हो जाता है । इन सबका कुप्रभाव मन पर पड़ता है जिससे मनुष्य की सूझ-बूझ समाप्त हो जाती है । मनुष्य निस्तेज, उत्साहहीन एवं लक्ष्यहीन हो जाता है । शरीर तथा मन से दुर्बल एवं रोगी व्यक्ति जीवन का सच्चे सुख और आनंद को प्राप्त नहीं कर सकता । बीमार होने की स्थिति में मनुष्य अपना तो अहित करता ही है, समाज का भी अहित करता है । गाँधी जी तो बीमार होना पाप का चिह्न मानते थे ।
खेल विजयी बनाते हैं — खेल खेलने से मनुष्य को संघर्ष करने की आदत लगती है । उसकी जुझारू शक्ति उसे नव-जीवन प्रदान करती है। उसे हार जीत को सहर्ष झेलने की आदत लगती है। खेलों से मनुष्य का मन एकाग्रचित होता है । खेलते समय खिलाड़ी स्वयं को भूल जाता है । खेल हमें अनुशासन, संगठन, पारस्परिक सहयोग, आज्ञाकारिता, साहस, विश्वास और औचित्य की शिक्षा प्रदान करते हैं ।
मनोरंजन — खेल हमारा भरपूर मनोरंजन करते हैं। खिलाड़ी हो अथवा खेल – प्रेमी, दोनों को खेल के मैदान में एक अपूर्व आनंद मिलता है। मनोरंजन जीवन को सुमधुर बनाने के लिए आवश्यक है । इस दृष्टि से भी जीवन में खेलों का अपना महत्त्व है ।