Class 10th Sanskrit Subjective Chapter 12 (संस्कृत)

Class 10th Sanskrit Subjective (संस्कृत)  बिहार बोर्ड कक्षा 10 संस्कृत अध्याय 12  का अब्जेक्टिव प्रश्न पीडीएफ़ Bihar Board (Matric मैट्रिक) vvi Subjective in Hindi pdf

Class 10th Sanskrit Subjective

कर्णस्य दानवीरता

1. ‘कर्णस्य दानवीरता’ पाठ के आधार पर दान की महत्ता को बतायें।

उत्तर—‘ कर्णस्य दानवीरता’ पाठ के आधार पर दान की महत्ता पर नाटककार ‘भास’ ने एक श्लोक का वर्णन किया है, जो कर्ण के द्वारा कहा गया है कि उचित समय, स्थान और व्यक्ति को दिया गया दान हमेशा स्थिर रहती है। क्योंकि समय बीतने पर शिक्षा नष्ट हो जाती है। जड़वाले वृक्ष गिर जाते हैं। जल से भरे तालाब सुख जाते हैं। परंतु हवन करने और दान करने से प्राप्त होने वाले पुण्य सदा स्थिर रहते हैं। अर्थात् इसका कभी नाश नहीं होता। संसार में इससे बड़ा सुकर्म कुछ भी नही है।

2. कर्ण की दानवीरता का वर्णन अपने शब्दों में करें।

उत्तर- कर्ण महादानी था। उसकी मान्यता थी कि समय आने पर शिक्षा नष्ट हो जाती है, मजबूत जड़ वाले पेड़ गिर पड़ते हैं, जल भी अपने स्थान पर जाकर सूख जाता है, परन्तु हवन किये गये एवं दान दिये गये द्रव्य यथावत् बने रहते हैं। इसीलिए जन्म के साथ उत्पन्न अपने रक्षक कवच और कुण्डल को भी उसने इन्द्र के माँगने पर निःसंकोच भाव से शल्य के मना करने पर भी दे दिया। जबकि वह जानता था कि बिना कवच और कुण्डल के युद्ध में जाने पर मैं मारा जाऊँगा तथा इन्द्र मुझको मरवाने के लिए ही ब्राह्मण वेष में आकर हठपूर्वक इन्हें माँग रहा है। जान की बिना परवाह किये उसने इन्द्र को कवच और कुण्डल दे दिया एवं अपने वचन तथा दान धर्म की रक्षा की। यही है कर्ण की दानवीरता ।

3. ‘कर्णस्य दानवीरता’ पाठ के आधार पर इन्द्र की चारित्रिक विशेषताओं का उल्लेख करें।

उत्तर – कर्णस्य दानवीरता पाठ के आधार पर इन्द्र कपटी पुरुष है, क्योंकि उसने छलपूर्वक दानवीर कर्ण के शरीर से कवच और कुण्डल ले लिया ।


4. ‘कर्णस्य दानवीरता’ पाठ को संक्षेप में लिखें।

उत्तर – भास के ‘कर्णभार’ के इस भाग में कर्ण की दानवीरता एवं इन्द्र की दुष्टता एवं कपटी चरित्र को उजागर किया गया है। अंगराज कर्ण महादानी एवं मित्र का विश्वासी है। वह माँगने वालों को खाली हाथ नहीं लौटा सकता है, चाहे उस दान से उसकी जान जाने की ही संभावना क्यों न हो। दानवीरता की रक्षा के लिए उसने जन्मना प्राप्त अपना रक्षक कवच और कुण्डल ब्राह्मण वेषधारी कपटी एवं स्वार्थी इन्द्र को दे देता है। उसकी मान्यता है कि शिक्षा, पादप और पानी भी समय आने पर नष्ट हो जाते हैं, परन्तु दान दी गई वस्तु का नाश कभी नहीं होता है।

5. कर्ण की चारित्रिक विशेषताओं का वर्णन करें।

उत्तर – कर्ण कौरव के पक्ष में युद्ध करते हैं। कर्ण के शरीर में स्थित कवच और कुण्डल से ये सुरक्षित थे क्योंकि जब तक कवच और कुण्डल कर्ण के शरीर में है तब तक कोई भी कर्ण को नहीं मार सकता है। इसलिए अर्जुन की सहायता के लिए इंद्र छलपूर्वक दानवीर कर्ण के शरीर से कवच और कुण्डल लेता है जिसे कर्ण प्रसन्नतापूर्वक दे देते हैं।

6. कर्ण के कवच और कुण्डल की विशेषताएँ क्या थी?

उत्तर – कर्ण के कवच और कुण्डल की विशेषता थी कि जब तक वह कर्ण के शरीर पर रहेगा तब तक देवता और दानवों के द्वारा भेदा नहीं जा सकता है।

7. दानवीर कर्ण के चारित्रिक गुणों का वर्णन करें।

उत्तर – दानवीर कर्ण एक साहसी तथा कृतज्ञ व्यक्ति था । वह वचन का सत्य और मित्र का विश्वास पात्र था। दुर्योधन द्वारा किये गए उपकार को वह कभी नहीं भूला। इंद्र द्वारा छल से कवच और कुंडल ले लेने के बाद भी दुर्योधन के लिए कुरुक्षेत्र में डटा रहा और वीरगति को प्राप्त किया । इसलिए इतिहास में कर्ण अमर हो गया।

8. “कर्णस्य दानवीरता ” पाठ के नाटककार कौन हैं? कर्ण किनका पुत्र था तथा उन्होंने कर्ण को दान में क्या दिया ?

उत्तर— “कर्णस्य दानवीरता” पाठ के नाटककार महाकवि ” भास” हैं। कर्ण सूर्य का पुत्र था। उन्होंने इंद्र को दान में अपने जन्म के साथ उत्पन्न अपने आत्मरक्षक कवच और कुण्डल दिया। उस कवच और कुण्डल में गुण था कि जब तक वे दोनों उनके पास रहते युद्ध भूमि में दुनिया की कोई शक्ति उन्हें पराजित नहीं कर सकती थी।

9. कर्ण के अनुसार चिरस्थायी क्या है?

उत्तर— ‘ कर्णस्य दानवीरता’ पाठ के आधार पर दान की महत्ता पर नाटककार ‘भास’ ने एक श्लोक का वर्णन किया है, जो कर्ण के द्वारा कहा गया है कि उचित समय, स्थान और व्यक्ति को दिया गया दान हमेशा स्थिर रहती है। क्योंकि समय बीतने पर शिक्षा नष्ट हो जाती है। जड़वाले वृक्ष गिर जाते हैं। जल से भरे तालाब सुख जाते हैं। परंतु हवन करने और दान करने से प्राप्त होने वाले पुण्य सदा स्थिर रहते हैं। अर्थात् इसका कभी नाश नहीं होता। संसार में इससे बड़ा सुकर्म कुछ भी नही है ।

10. सात्विक दान क्या है? पठित पाठ के आधार पर उत्तर दें ।

उत्तर- दान देना हो तो जिसने आपका उपकार नहीं किया हो उसे देना चाहिए। स्थान, समय और उचित व्यक्ति को विचार कर दिया गया दान सात्विक है।

11. दानवीर से किसका संबंध इस पाठ्य पुस्तक में है ? तीन वाक्यों में उत्तर दें।

उत्तर— दानवीर से कर्ण को संबोधित किया गया है। वह दृढ़ संकल्प को पूरा करने वाला था। इन्द्र के द्वारा ” कवच कुंडल” माँगने पर वह सहर्ष दे देता है। यही उसकी दानवीरता थी । इसीलिए उसने अमरता को पा लिया।

12. इन्द्र के चारित्रिक दोषों का वर्णन हिन्दी में करें।

उत्तर – ऐसे तो इन्द्र को देवराज कहा गया है। परंतु उनमें कुछ चारित्रिक गुणों की कमी दिखलाई गई है। कर्ण के ” कवच और कुंडल” को छल से दान में ले लेना इन्द्र का सबसे बड़ा चारित्रिक दोष है । राजा शिवी से भी दान में नेत्र ले लेना अशोभनीय है। कहा भी गया है, “ऊँच निवासू नीच करतूती देख न सकई पराई विभूति” इन्द्र के संबंध में यह अक्षरशः सत्य प्रतीत होता।

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