Class 10th Sanskrit Subjective Chapter 9 (संस्कृत)

Class 10th Sanskrit Subjective (संस्कृत)  बिहार बोर्ड कक्षा 10 संस्कृत अध्याय 9  का अब्जेक्टिव प्रश्न पीडीएफ़ Bihar Board (Matric मैट्रिक) vvi Subjective in Hindi pdf

Class 10th Sanskrit Subjective

स्वामी दयानंदः

1. स्वामी दयानंद की शिक्षा-व्यवस्था का वर्णन करें।

उत्तर— स्वामी दयानन्द आधुनिक भारत में समाज और शिक्षा के महान उधारक एवं समाज सुधारक हुए। इन्होंने राष्ट्रीयता को लक्ष्य बनाकर भारतवासियों के लिए पथ प्रदर्शक का काम किया। भारतीय समाज में व्याप्त रूढ़िवादिता को दूर कर एक नये समाज की स्थापना की । जातिवाद, छुआछूत, अशिक्षा, धर्म में आडम्बर आदि अन्य कुरीतियों के खिलाफ जागरण पैदा किया।

2. स्वामी दयानन्द को मूर्तिपूजा के प्रति अनास्था कैसे हुई ?

उत्तर – स्वामी दयानन्द ने देखा कि शंकर भगवान की मूर्ति पर चूहे चढ़कर भगवान पर चढ़ी हुई वस्तुओं को खा रहे हैं और यह मूर्ति कुछ भी करने में समर्थ नहीं है। वस्तुतः देवता प्रतिमा में नहीं है । इसी कारण से स्वामी दयानन्द को मूर्तिपूजा के प्रति अनास्था हुई।

3. आधुनिक भारत की स्वामी दयानन्द का क्या योगदान है?

उत्तर— आधुनिक भारत के समाज सुधारकों में स्वामी दयानन्द का स्थान अन्यतमं है। उन्होंने समाज में व्याप्त – जातिवाद, अस्पृश्यता, धार्मिक कार्यों में दिखावा आदि का बलपूर्वक विरोध किया। शिवोपासक परिवार में जन्म होने के कारण स्वामी दयानन्द को शिवरात्रि पर्व की रात्रि में अपने ज्ञान का उद्बोधन हुआ । विरजानन्द का सान्निध्य पाकर धन्य हो गये। वे वैदिक धर्म प्रचार और सत्य का प्रसार में अपना जीवन समर्पित कर दिये। इन्होंने राष्ट्रीयता को लक्ष्य बनाकर भारतवासियों के लिए पथप्रदर्शक का काम किया। “वैदिक धर्म” एवं ‘सत्यार्थप्रकाश’ नामक ग्रंथ की रचना की। नई शिक्षा नीति का निर्माण किया। जो आज डी०ए०वी० नाम का एक विद्यालय समूह है। इनका योगदान अतुलनीय है।

4. स्वामी दयानन्द कौन थे एवं इनका जन्म कहाँ हुआ था तथा उन्होंने किस ग्रंथ की रचना की ?

उत्तर- आधुनिक भारत के समाज तथा शिक्षा के महान् उद्धारक स्वामी दयानंद थे। इन्होंने ‘आर्यसमाज’ नामक संस्था की स्थापना की थी। इनका जन्म गुजरात राज्य के टंकारा नामक गाँव में 1824 ई० में हुआ था। इनका मूल नाम मूलशंकर था। इन्होंने ‘सत्यार्थ प्रकाश’ नामक ग्रंथ की रचना की थी।

5. स्वामी दयानन्द मूर्ति पूजा के विरोधी कैसे बने?

उत्तर- स्वामी दयानंद का जन्म शिवोपासक कर्मकाण्डी परिवार में हुआ था। एक बार महाशिवरात्रि पूजा के रात्रि जागरण के समय इन्होंने देखा कि भगवान शंकर की प्रतिमा पर चढ़ाये गये प्रसाद आदि को एक चूहा खा रहा है। उसे मूर्ति कुछ नहीं कर रही है। यह देखकर उन्हें दृढ़ विश्वास हो गया कि इस मूर्ति में देवता नहीं है। यह मूर्ति व्यर्थ है। स्वामी दयानंद रात्रि जागरण छोड़कर घर चले गये। उसी दिन से मूर्ति पूजा के विरोधी हो गये।

6. ‘स्वामी दयानंद’ पाठ को संक्षेप में अपने शब्दों में लिखें।

उत्तर – स्वामी दयानन्द धर्मोद्धारक, सत्यान्वेषी एवं महान् समाज सुधारक थे। इनका जन्म 1824 ई० में गुजरात के टंकारा गाँव में हुआ था। इन्होंने छुआछूत, बालविवाह, मूर्तिपूजा एवं समाज में विधवाओं की दयनीय स्थिति का विरोध तथा स्त्रीशिक्षा विधवाविवाह आदि विभिन्न समाजोद्धारक काम किया। स्वामी जी ने सत्यप्रकाश नामक ग्रन्थ की रचना तथा आर्यसमाज संस्था की स्थापना कर अपने अनुयायियों का महान् उपकार किया।

7. स्वामी दयानंद समाज सुधारक थे, कैसे ?

उत्तर- स्वामी दयानंद ने ” सत्यार्थ प्रकाश” नामक पुस्तक को लिखकर समाज सुधारक का काम किया है। सर्वप्रथम उन्होंने समाज में फैली बुराइयों को दर्शाया है। पुनः उन्होंने समाज में फैले विधवाओं की उपेक्षा, बाल-विवाह, अस्पृश्यता तथा अशिक्षा आदि सामाजिक दोषों को उन्होंने दूर किया। इसके लिए उन्होंने अन्य समाजसुधारकों का सहयोग लिया। आर्य समाज उन्हीं की देन है। मूर्तिपूजा एवं पाखंड की उन्होंने कटु आलोचना की है।

8. किसने हिन्दू समाज का तिरस्कार कर धर्मान्तरण किया?

उत्तर- प्राचीन समाज में जातिवाद से उत्पन्न विषमता छुआछूत धार्मिक कार्यों में दिखावा स्त्रियों में अशिक्षा विधवाओं का तिरस्कार आदि दोष थे। अतः अनेक दलित हिन्दू समाज को छोड़कर दूसरे धर्म को स्वीकार कर लिया ।

9. प्राचीन शिक्षा के दोषों के निवारण में स्वामी दयानन्द के क्या योगदान है?

उत्तर – स्वामी दयानन्द ने शिक्षा के दोषों को निवारण के लिए सत्यार्थ प्रकाश ग्रंथ की रचना की। वेदों के प्रति ध्यान आकृष्ट कराने के लिए वेदभाष्यों को संस्कृत और हिन्दी में रचनाकर मार्ग प्रशस्त किया। नई शिक्षा पद्धति को क्रियान्वयन करने के लिए 1875 ई० में आर्य समाज की स्थापना किये। आगे चलकर यह डी० ए० वी०’ विद्यालयों का समूह शिक्षा के क्षेत्र में काम कर रहा है।

10. स्वामी दयानन्द के सामाजिक सुधार कार्यों का वर्णन अपनी भाषा में करें।

उत्तर – स्वामी दयानन्द ने अपना पूरा जीवन वैदिक धर्म और सत्य के प्रचार प्रसार में लगा दिया। उन्होंने धर्माडम्बरों का खण्डन किया तथा उसके समर्थक पण्डितों को अपने तर्क से पराजित कर अपना अनुयायी बनाया। उन्होंने बाल विवाह, मूर्तिपूजा और छुआछूत का विरोध किया एवं स्त्रियों में शिक्षा के प्रसार का समर्थन किया। स्वामीजी ने हिन्दी में ‘सत्यार्थ प्रकाश’ नामक पुस्तक की रचना और ‘आर्यसमाज’ नामक संस्था की स्थापना कर समाज का बहुत बडा उपकार किया।

11. आर्य समाज की स्थापना कहाँ, कब और किसने की ?

उत्तर – 1875 ई० में मुम्बई शहर में ‘आर्यसमाज’ संस्था की स्थापना स्वामी दयानन्द ने की थी। इस समय ‘आर्यसमाज’ की शाखा एवं प्रशाखा देश एवं विदेशों में प्राय: प्रत्येक शहर में है।

12. स्वामी दयानन्द कौन थे? समाज सुधार के लिए उन्होंने क्या किया ?

उत्तर – स्वामी दयानन्द आर्यसमाज के संस्थापक और महान् सुधारक थे। मध्यकाल में भारतीय समाज अनेक कुरीतियों से दूषित था। उन्होंने समाज में फैले विधवाओं की उपेक्षा, बाल-विवाह, छुआछूत तथा अशिक्षा आदि सामाजिक दोषों को दूर करने का भगीरथ प्रयास किया। मूर्तिपूजा एवं पाखंड की कटु आलोचना की है। उन्होंने प्राचीन शिक्षा और नवीन शिक्षा का समन्वय कर एक अलग शिक्षा पद्धति चलाये।

13. मध्यकाल में भारतीय समाज क्यों दूषित हो गया था?

उत्तर – मध्यकाल में अनेक गलत रीति-रिवाजों से भारतीय समाज दूषित था। जातिवाद से किया गया विषमता, छुआछूत धार्मिक कार्यों में दिखावा, स्त्रियों की अशिक्षा, विधवाओं की दुर्गति, शिक्षा का अप्रसार इत्यादि दोष प्राचीन समाज में थे।

14. समाज के उन्नयन में स्वामी दयानंद के योगदानों पर प्रकाश डालें।

उत्तर— मध्यकाल में भारतीय समाज अनेक कुरीतियों से दूषित था । यथा- विधवाओं की उपेक्षा, बाल-विवाह, छुआछूत तथा अशिक्षा आदि। इन दोषों को दूर करने का भगीरथ प्रयास स्वामी दयानन्द ने किया। वे इसमें सफल भी हुए। प्राचीन शिक्षा और नवीन शिक्षा का समन्वय कर एक अलग शिक्षा पद्धति चलाये जो आज डी०ए०भी० नामक संस्था के रूप में जाना जाता है। ‘सत्यार्थ प्रकाश’ नामक पुस्तक की रचना और ‘आर्यसमाज’ नामक संस्था की स्थापना कर समाज पर बहुत बड़ा उपकार किया।

15. स्वामी दयानंद ने अपने सिद्धांतों के संकलन के लिए क्या किया?

उत्तर – स्वामी दयानन्द ने अपने सिद्धान्तों के संकलन के लिए ‘सत्यार्थ प्रकाश’ नामक ग्रंथ को हिन्दी भाषा में रचना कर अपने अनुयायी लोगों का बहुत बड़ा उपकार किया। कुछ वेदों के प्रति सभी धर्मावलम्बियों को ध्यान में रखकर उन्होंने वेदभाष्यों को संस्कृत और हिन्दी दोनों भाषाओं में रचना की।

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