दहेज प्रथा : एक अभिशाप – Dahej Pratha ek Abhishap

भूमिका — यह प्रथा नारी जीवन की अस्मिता पर गंभीर प्रश्नचिह्न खड़ा करती है । इस प्रथा के चलते नारी जीवन त्रस्त है । न जाने कितनी कन्याएँ इसकी बलिवेदी पर जल रही हैं।

प्राचीन काल में इसका रूप / परम्परा और रूढ़ि— प्राचीन काल में दहेज को ‘यौतुक’ या ‘स्त्रीधन’ कहा जाता था। मगर वह राजा-महाराजाओं तक ही सीमित थी । बाद में, यह सामंतवादी युग की देन बनी । विवाह के समय कन्या के माता-पिता वर पक्ष को जो वस्त्राभूषण, धन तथा सामान देते थे, उसमें कहीं से भी कोई दबाव नहीं था । प्राचीन काल में दहेज देने की प्रथा तो थी, पर उसमें किसी प्रकार की बाध्यता नहीं थी । यह पूर्णतः कन्या पक्ष की सामर्थ्य और श्रद्धा पर आधृत थी ।

वर्तमान काल में इसकी विडम्बना बढ़ती माँगें और नववधू पर अत्याचार- दुर्भाग्य से आजकल दहेज की जबरदस्ती माँग की जाती है। दूल्हों के भाव लगते हैं। बुराई की हद यहाँ तक बढ़ गई है कि जो जितना शिक्षित है, समझदार है, उसका भाव उतना ही तेज है। आज डॉक्टर, इंजीनियर का भाव आसमान छू रहा है । यही सबसे बड़ी विडम्बना है।

दहेज-प्रथा के परिणाम / भारतीय समाज की विद्रुपता — दहेज प्रथा के दुष्परिणाम विभिन्न हैं । या तो कन्या के पिता को लाखों का दहेज देने के लिए घूस, रिश्वतखोरी, भ्रष्टाचार, कालाबाजार आदि का सहारा लेना पड़ता है, या उसकी कन्याएँ अयोग्य वरों के मत्थे मढ़ दी जाती हैं। हम रोज समाचार-पत्रों में पढ़ते हैं कि अमुक शहर में कोई युवती रेल के नीचे कट मरी, किसी बहू को ससुराल वालों ने जलाकर मार डाला, किसी ने छत से कूदकर आत्महत्या कर ली। ये सब घिनौने परिणाम दहेजरूपी दैत्य के ही हैं

इसे रोकने के कानूनी प्रावधान / दहेज विरोधी कानून- हालांकि दहेज को रोकने के लिए समाज में संस्थाएँ बनी हैं, युवकों से प्रतिज्ञा-पत्रों पर हस्ताक्षर भी लिए गए हैं, कानून भी बने हैं, परंतु समस्या ज्यों-की-त्यों है। सरकार ने ‘दहेज निषेध अधिनियम’ के अंतर्गत दहेज के दोषी को कड़ा दण्ड देने का विधान रखा है। परंतु, वास्तव में आवश्यकता है जन-जागृति की। जब तक युवक दहेज का बहिष्कार नहीं करेंगे और युवतियाँ दहेज लोभी युवकों का तिरस्कार नहीं करेंगी, तब तक यह कोढ़ चलता रहेगा ।

कैसे छुटकारा पाएँ – इस प्रथा को दूर करने के लिए नवयुवक – नवयुवतियों को ही आगे आना पड़ेगा और यह प्रण करना होगा कि वे दहेज न लेंगे और न देंगे, तभी यह कुरीति रूकेगी और नहीं तो यह दानव भारतीय समाज को एक दिन खोखला बनाकर छोड़ेगा। परिणाम होगा कि अनीतियाँ, व्यभिचार और हत्या तथा आत्महत्या के दलदल में फँसा यह भारतीय समाज रसातल को चला जाएगा।

उपसंहार– दहेज अपनी शक्ति के अनुसार दिया जाना चाहिए, धाक जमाने के लिए नहीं । दहेज दिया जाना ठीक है, माँगा जाना ठीक नहीं। दहेज को बुराई वहाँ कहा जाता है, जहाँ माँग होती है । दहेज प्रेम का उपहार है, जबरदस्ती खींच ली जाने वाली संपत्ति नहीं ।