मेरे प्रिय लेखक – Mere Priya Lekhak

भूमिका – मुंशी प्रेमचन्द को हिन्दी कथा – साहित्य का सम्राट् कहा जाता है । वे अपनी श्रेष्ठ कहानियों और उपन्यासों के बल पर आज तक हिन्दी साहित्य-जगत् पर छाए हुए हैं। हिन्दी कहानी का नाम लेते ही जो पहला नाम होंठों पर आता है – वह है मुंशी प्रेमचन्द । मुंशीजी ने अपने युग से अनुभव लिए और उन्हें अनुभूतियों के रूप में समाज को बाँट दिया। जितना उन्होंने समाज से लिया, उससे अधिक समाज को प्रदान किया।

रचनाकार का परिचय – प्रेमचन्द का वास्तविक नाम धनपतराय था। उनका जन्म बनारस से चार मील दूर लमही नामक गाँव में हुआ था । उनके पिता अजायबराय डाकखाने में मुंशी के पद पर कार्यरत थे । घर में आर्थिक तंगी बराबर बनी रहती थी। अभी उनकी वय सात वर्ष ही थी कि माताजी का निधन हो गया। पिता ने दूसरा विवाह रचा लिया । विमाता ने उनके प्रति घोर कठोरता और उपेक्षा का रवैया अपनाया । इस बीच उनका विवाह कर दिया गया। विवाह को एक ही वर्ष बीता था कि पिता का साया भी उठ गया। अब बालक प्रेमचन्द के कन्धों पर असमय ही भरी-पूरी गृहस्थी का बोझ आ पड़ा। वे दिन भर पढ़ते, शाम को ट्यूशन करते और दारिद्र्य का शाप ढोते । 1905 में उन्होंने शिवरानी देवी नामक कथा – लेखिका से पुनर्विवाह
कर लिया ।

इनकी प्रसिद्ध रचनाएँ — मुंशीजी ने 300 के लगभग कहानियाँ लिखीं। उनकी कुछ प्रसिद्ध कहानियाँ इस प्रकार हैं-‘कफन’, ‘पूस की रात’, ‘शतरंज के खिलाड़ी’, ‘दूध का दाम’, ‘दो बैलों की कथा’, ‘पंच परमेश्वर’ आदि। उनके उपन्यासों में गोदान, गबन, कर्मभूमि, रंगभूमि, निर्मला प्रसिद्ध हैं ।

लेखक की विशेषता / सर्वप्रियता का आधार – उनकी साहित्यिक विशेषताएँ- हिन्दी साहित्य में मुंशी प्रेमचन्द का वही स्थान है, जो बगला में शरत्चन्द्र का है। मजदूर और किसान को कथा का नायक बनाने का श्रेय प्रेमचन्द को जाता है। किस्सागोई में वे अपना सानी नहीं रखते ।

प्रेमचन्द के कथा – साहित्य में सामान्य मानव के प्रति गहरी सहानुभूति दिखाई देती है। उन्होंने राजा-रानियों की कपोल कल्पित कहानियाँ न लिखकर जन-जन के मन को अपनी कहानियों में उतारा। अपने बचपन में जो कटु अनुभव उन्होंने भोगे थे, उन सभी का प्रभाव उनकी कहानियों में देखा जा सकता है। उन्होंने मानवीय करुणा, दया, ममता, सहयोग, प्रेम आदि पर आस्थापरक कहानियाँ भी लिखीं तथा देश की सामाजिक दुर्दशा पर भी मार्मिक कहानियाँ लिखीं। उन्होंने अधिकांशत: अपनी कहानियों में ग्रामीण जीवन की यथार्थ स्थिति का चित्रण किया। ‘पूस की रात’, ‘कफन’, ‘दूध का दाम’ आदि ऐसी ही मार्मिक कहानियाँ हैं। ‘शतरंज के
खिलाड़ी’ कहानी में उन्होंने जैसा युगीन चित्रण किया है, वह प्रेमचन्दकालीन युग का इतिहास ही बन गया है। उन्होंने ग्रामीण जीवन में व्याप्त छुआछूत, जाति-पाँति, ब्राह्मणों के अहंकार, सवर्णों के अवर्णों पर अत्याचार आदि को मार्मिकता से चित्रित किया है ।

निष्कर्ष / उपसंहार — मुंशीजी की भाषा इतनी सरल, सरस, गहरी और साहित्यिक है कि अनपढ़ और विद्वान दोनों पाठक उसमें भरपूर रस लेते हैं। वास्तव में उन्होंने लोक- भाषा को साहित्यिक गौरव प्रदान करने का प्रयास किया है । सूक्तियों को जड़ने में और लोकोक्तियों के सटीक प्रयोग में उनकी समानता करने वाला अन्य कोई हिन्दी कथाकार नहीं दिखाई देता । मुंशीजी का शब्द प्रयोग स्वाभाविक है ।