भूमिका – समय जीवन की गति होता है। सृष्टि की सभी घटनाएँ तथा सभी बातें समय से बँधी होती हैं। समय को काल, क्षण, पल, युग, वर्ष, घंटा, मिनट आदि कई नामों से पुकारा जाता है । समय हमेशा गतिशील होता है। संसार के सबकुछ समय के अधीन होते हैं, इसलिए समय की महत्ता असीम है।
समय रहते सचेत होना— समय किसी की प्रतीक्षा नहीं करता। इसलिए, व्यक्ति को समय रहते सचेत होना चाहिए। छात्र को समय पर अपना नित्यकर्म, अध्ययन, खान-पान तथा अन्य काम-धंधा करना चाहिए, समय पर सोना तथा उठना चाहिए। किसानों को समय के अनुसार कृषि कर्म करना चाहिए। श्रमिकों को समय के अनुसार ही श्रम करना चाहिए। पशु-पक्षी भी समय का पालन करते हैं। समय पीछे नहीं मुड़ता, इसलिए जो व्यक्ति समय रहते अपने कर्म के प्रति सचेत नहीं होता उसे समय बीत जाने पर पछताना पड़ता है।
सदुपयोग का लाभ – समय और कर्म (श्रम) का पारस्परिक सम्बन्ध है। समय पर किया गया काम हीरे-मोती जैसा लाभकारी होता है। यदि व्यक्ति सुबह-सवेरे सोकर उठता है तो दिनभर तरोताजा रहता है और सभी काम समय पर सम्पन्न हो जाते हैं। इसी प्रकार, रात में सवेरे सोने पर विश्राम पूरा होता है एवं शरीर स्वस्थ रहता है। समय पर अध्ययन, भोजन एवं काम-धाम पूर्ण लाभकारी होते हैं। अतः समय का सदुपयोग व्यक्ति को प्रचुर लाभ देता है।
दुरुपयोग की हानि – समय के दुरुपयोग से समय, श्रम तथा धन की हानि होती है। जो व्यक्ति समय पर विद्यालय, कार्यालय या यात्रा पर नहीं जा पाते उन्हें इनके लाभ नहीं मिलते और किया गया श्रम तथा उनमें लगा धन व्यर्थ हो जाता है। समय के दुरुपयोग से हमेशा हानि होती है और व्यक्ति को असफलता मिलती है।
उपसंहार — समय की महत्ता को पहचानते हुए जो व्यक्ति समय का सदुपयोग करता हैं उसका जीवन सुखी होता है तथा जो समय का दुरुपयोग करता है, वह असफलता का भागी होता है।