टी. वी : वरदान या अभिशाप – TV Vardan ya Abhishap

विवाद का विषय — टी० वी० यानी टेलीविजन आज मनोरंजन तथा समाचार प्रसारण का प्रमुख साधन है। यह प्रसारण का श्रव्य-दृश्य साधन है। टी० वी० समाज के लिए वरदान है या अभिशाप – यह विवाद का एक विषय बना हुआ है, क्योंकि टी॰ वी॰ से जहाँ व्यक्ति को अनेक सुख-सुविधाएँ प्राप्त हुई हैं वहीं हानियाँ भी उठानी पड़ती है। टी॰ वी॰ से लोग घर बैठे मनोरंजन, समाचार, प्रचार-प्रसार, ज्ञान-विज्ञान आदि के लाभ लेते हैं वहीं व्यक्तिगत निष्क्रियता, अपराध – वृद्धि, लोकसंपर्क में कमी आदि हानियाँ भी उठानी पड़ती है।

ज्ञान – वृद्धि – टी० वी० से लोगों के ज्ञान में वृद्धि हुई है। लोग घर बैठे ही देश-दुनिया की खबरों से तत्काल अवगत होते हैं। विभिन्न वस्तुओं के प्रचार से अवगत होते हैं। ज्ञान-विज्ञान संबंधी जानकारियाँ भी प्राप्त करते हैं। विभिन्न कला-संस्कृति आदि की उपलब्धियों से परिचित होते हैं। इस प्रकार, बिना किसी प्रयास के घर बैठे ही लोगों की ज्ञान-वृद्धि होती रहती है।

पाठ्यक्रम संबंधी कार्यक्रम — टी० वी० पर विद्यार्थियों के लिए विभिन्न पाठ्यक्रम संबंधी कार्यक्रम भी प्रसारित होते हैं। छात्र अपने विषयं के अनुरूप चैनल से शिक्षा-ग्रहण कर सकते हैं। पाठ्यक्रम संबंधी कार्यक्रम में पुस्तकें भी स्क्रीन पर उपलब्ध होती हैं तथा प्रख्यात शिक्षकों का अध्यापन कार्यक्रम भी उपलब्ध होता है । इससे छात्रों को यह सुविधा है कि उन्हें विभिन्न विषयों के अध्ययन के लिए अधिक व्यय एवं समय नहीं लगाना पड़ता है।

हानियाँ – व्यावहारिक रूप से सोचने पर ऐसा दिखता है कि टी० वी० से लाभ की अपेक्षा हानियाँ अधिक हैं। सर्वप्रथम, टी० वी० लोगों को निष्क्रिय बना देता है – लोग बिना किसी क्रियाशीलता के एक जगह बैठकर केवल देखते रहते हैं। छात्र टी० वी० पर अध्ययन न कर मनोरंजन ही करने लगते हैं। प्रचार-प्रसार में भी ज्यादातर नकली चीजों की जानकारी ही मिलती है। लोगों का एक-दूसरे से सामाजिक सम्पर्क नहीं रह जाता, क्योंकि लोग टी० वी० में ही सटे रहते हैं। ज्यादा टी० वी० देखना आँख – कान के लिए भी नुकसानदेह है। ज्यादा समय तक टी० वी० देखने से समय की बर्बादी भी होती है तथा आवश्यक काम बाधित होता है। टी० वी० देखकर बहुत लोग अपराध करना भी सीख लेते हैं।

निष्कर्ष — निष्कर्ष के तौर पर कहा जा सकता है कि टी० वी० का सीमित उपयोग लोगों के लिए वरदान है और असीमित उपयोग अभिशाप है। फिर अपनी आवश्यकताओं के अनुसार चैनलों का उपयोग वरदान हैं और अनावश्यक चैनलों का उपयोग अभिशाप है। इस प्रकार, टी.वी. अपने-आपमें एक वरदान है, किन्तु इसका दुरुपयोग अभिशाप है।