भूमिका – अध्यापक हमारे समाज के सम्मानित व्यक्ति होते हैं। अध्यापक छात्र अथवा शिष्य का मार्गदर्शक तथा व्यक्तित्व निर्माण करने वाला होता है। किन्तु, हरेक व्यक्ति अध्यापक नहीं बन सकता। अध्यापक वही हो सकता है जिसका कर्म आदर्श हो। और ऐसा व्यक्ति आदर्श अध्यापक कहला सकता है।
शिक्षक का परिचय — मेरे प्रिय अध्यापक श्री वर्माजी ‘सादा जीवन उच्च ‘विचार’ में विश्वास रखते हैं। वे सदैव खादी के वस्त्र पहनते हैं और पूर्णत: शाकाहारी हैं। उनके विचार बहुत उच्च हैं। वे मानवतावादी दृष्टिकोण अपनाने के पक्षपाती हैं। जाति-पाँति से उन्हें सख्त घृणा है । वे सभी को एकसमान मानते हैं और उनसे प्रेममय व्यवहार करते हैं। उन्होंने दर्शनशास्त्र का भी गहन अध्ययन कर रखा है। वे हमें महान दार्शनिकों के विचारों से अवगत कराते रहते हैं। उनकी बातें हम बहुत ध्यानपूर्वक सुनते हैं।
सर्वप्रियता का आधार — मेरे प्रिय अध्यापक श्री वर्माजी बहुत ही अनुशासन प्रिय हैं। उन्हें अनुशासनहीनता से सख्त नफरत है। वे किसी भी कीमत पर विद्यालय में उच्छृंखलता सहन नहीं कर सकते। उन्हें समय की पाबंदी बहुत प्रिय है। विलंब से आने वाले छात्रों को वे दंडित करने से भी नहीं चूकते। उनके इन प्रयासों के सुखद परिणाम सभी के सामने आ रहे हैं। वे कभी सस्ती लोकप्रियता के चक्कर में नहीं पड़ते। श्री वर्मा जी अपने विषय के प्रकांड विद्वान हैं। हिंदी साहित्य पर उनका असाधारण अधिकार है। वे कविताओं को पूरे संदर्भ सहित समझाते हैं। उन्हें अनेक प्रासंगिक कथाएँ स्मरण हैं। प्रसंगानुकूल वे उन्हें सुनाकर पाठ को रोचक बना देते हैं । कविता को पूरी लय के साथ गाकर पढ़ते हैं। उनके काव्य पाठ के दौरान विद्यार्थी झूम उठते हैं। उनके पढ़ने के ढंग से ही कविता का मूल भाव स्पष्ट हो जाता है। गद्य पाठ को भी वे बहुत प्रभावशाली ढंग से समझाते हैं।
मेरे प्रिय अध्यापक हमारी दैनिक समस्याओं को सुलझाने में अत्यंत रुचि लेते हैं। हम उन्हें सच्चा मार्गदर्शक मानते हैं। वे हमारे साथ स्नेहमय एवं सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार करते हैं। सभी विद्यार्थी उन्हें अपना समझते हैं। विद्यार्थियों में वे अत्यंत लोकप्रिय हैं। मेरे इन अध्यापक के प्रयासों का ही यह सुखद परिणाम है कि प्रतिवर्ष हिंदी विषय का परीक्षा परिणाम शत-प्रतिशत रहता है। चार-पाँच विद्यार्थी विशेष योग्यता भी प्राप्त करते हैं। उन्हीं के प्रयासों से हमारा विद्यालय सांस्कृतिक गतिविधियों में भी अग्रणी रहता है।
अध्ययनशीलता — आदर्श अध्यापक वही है जो स्वयं अध्ययनशील हो। तभी उसका शिष्य भी अध्ययनशील हो सकता है। जब तक व्यक्ति स्वयं अध्ययनशील न हो तब तक वह अध्यापन नहीं कर सकता। क्योंकि, विषय की सार्थकता जाने बिना अध्यापन करना सफल नहीं हो पाता और विषय की सार्थकता जानने के लिए अध्ययन करना आवश्यक है। इस प्रकार, अध्ययनशीलता अध्यापक का लक्षण है।
जो माता-पिता दोनों का प्यार दें — अध्यापन में प्रेम और लगन की आवश्यकता होती है। आदर्श अध्यापक अपने शिष्यों के प्रति स्नेहपूर्ण होते हैं। शिष्य को आदर्श अध्यापक के निकट अपने माता-पिता का प्यार मिलने पर अध्यापन का शत-प्रतिशत प्रभाव पड़ता है। मेरा अध्यापक गणपत गौड़ अध्यापन के समय के बाद हमेशा स्नेहपूर्वक सभी छात्रों को माता के समान खाने, खेलने और विश्राम की याद दिलाते रहते हैं और पिता के समान हमें नुकसानियों तथा कठिनाइयों के प्रति सचेत करते रहते हैं।
चरित्रवान — मेरे अध्यापक इतने चरित्रवान हैं कि हमारे पड़ोस के अधिकांश व्यक्ति इनका आचरण अपनाते हैं। वे किसी से प्रेम से बातचीत करते हैं। सूर्योदय के एक घंटा पहले उठते हैं। नित्य क्रिया सम्पन्न कर संध्या – वन्दन करते हैं। गरीबों की सहायता करते हैं। पड़ोस के बड़े-बुजुर्गों की खोज-खबर लेते हैं तथा उनकी मदद भी करते हैं। अपनी नियमित आय के अतिरिक्त उनमें विशेष लाभ का लालच बिल्कुल नहीं है। शिष्य उनके आचरण से बहुत प्रभावित हैं ।
आज अध्यापक की दशा — आज आदर्श अध्यापक विरले मिलते हैं। आज अध्यापक तथा शिष्य का सम्बन्ध व्यापारिक हो गया है। अध्यापक स्कूल में कम तथा कोचिंग संस्थानों में अधिक समय देते हैं। इतना ही नहीं, अध्यापन का स्तर तथा अवसर भी गिर गया है। इसलिए, अध्यापकों का सम्मान भी औपचारिक ही रह गया है।
उपसंहार – आदर्श अध्यापक के अभाव में आज शिक्षा का स्तर भी गिर गया है। आदर्श अध्यापक और शिक्षा एक-दूसरे के पर्याय होते हैं। इसलिए, अध्यापकों को आदर्श का अनुकरण करना चाहिए ।