भारतीय मजदूर का चित्र — मजदूर आर्थिक व्यवस्था का प्रमुख अंग होता है। मजदूर अर्थव्यवस्था का सक्रिय एवं प्रमुख भागीदार होता है। भारतीय मजदूर कहने के लिए भले अर्थव्यवस्था का प्रमुख अंग हैं किन्तु इनकी स्थिति अर्थव्यवस्था में सबसे कमजोर सामाजिक वर्ग के रूप में है। इनका आवास स्वस्थ वातावरण में नहीं होता। इन्हें श्रम के अनुकूल संतुलित आहार नहीं मिलता। इनके बच्चों की शिक्षा-दीक्षा और रहन-सहन उपयुक्त रूप में नहीं होता। कुल मिलाकर, भारतीय मजदूर जीवनभर समस्याओं से जूझते हुए किसी तरह केवल अपना जीवन गुजार पाते हैं।
भारतीय मजदूर की मजबूरी — भारतीय मजदूर कम मजदूरी पर काम करने को विवश होते हैं। इसका कारण है इनकी गरीबी का चक्र । इनकी आर्थिक स्थिति सुदृढ़ नहीं होती, जिससे कुछ भी आय प्राप्त करने के लिए कम मजदूरी पर ही सहमत हो जाते हैं। इनमें संगठन का अभाव होता है, जिससे आपसी प्रतिस्पर्द्धा में कम मजदूरी पर काम करना इनकी मजबूरी होती है।
घोर परिश्रमी – भारतीय मजदूर घोर परिश्रमी होते हैं। अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए ये दिन और रात में भी काम करते हैं। अपनी निरन्तर परिश्रम के कारण ये अपने बाल-बच्चे तथा परिवार की देखभाल भी नहीं कर पाते। अपने स्वास्थ्य का भी ख्याल नहीं रख पाते।
अज्ञान और अशिक्षा — भारतीय मजदूर की दयनीय स्थिति का एक प्रमुख कारण इनका अज्ञान और अशिक्षा भी है। भारतीय मजदूरों को देश-दुनिया की अवस्था का ज्ञान नहीं होता। अधिकांश मजदूरों को काम की समुचित शिक्षा नहीं होती । काम की अकुशलता तथा व्यवस्था के ज्ञान का अभाव भी इनकी कम मजदूरी का एक कारण है।
उत्थान के उपाय– मजदूर अर्थव्यवस्था का सक्रिय साधन है, इसलिए समाज तथा सरकार सबको इनके उत्थान के प्रति जवाबदेह होना चाहिए। सरकार ने न्यूनतम मजदूरी अधिनियम लागू कर मजदूरों की स्थिति सुधारने का प्रयास किया है किन्तु वह तो फिर भी निम्न स्थिति ही है। उन्हें निर्वाह स्तर की मजदूरी मिलना चाहिए । उचित शिक्षा-दीक्षा की व्यवस्था करना, उन्हें बुरी आदतों से मुक्त करना तथा स्वरोजगार के द्वारा आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास किया जाना चाहिए ।