भूमिका- मानव समाज में कटुता बहुत तेजी से बढ़ी है। लोग मतलबी होते जा रहे हैं। ऑफिस से घर और घर के अन्दर ताले में बन्द हो जाते हैं। यह कोई जिन्दगी जीना नहीं है, अपने को मशीन बना लेना है- “यंत्र मानव “। दिशाहीन व्यस्तता मनुष्य को अपने वास्तविक आनंद तथा सुख से दूर ले जाता है। अतः हमें निराश जीवन से मुक्ति हेतु सार्वजनिक जीवन में आना पड़ेगा और उसका सबसे बड़ा माध्यम है ‘त्योहार’।
पर्व की महत्ता — त्योहार को हम मुख्य रूप से तीन भाग में बाँट सकते हैं। धार्मिक त्योहार जिसे हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख और पारसी अपने-अपने ढंग से मनाते हैं वे सामाजिक त्योहार भी मनाते हैं। और उसमें उनकी संस्कृति की झलक दिखलाई पड़ती है। रथयात्रा, होली, रक्षा बंधन, दशहरा, दीवाली, जन्माष्टमी, नागपंचमी, छठ, गोधन पूजन, ईद-बकरीद, मुहर्रम, सबेबरात, क्रिसमस, ओणम, वैशाखी, पोंगल, गणेश चतुर्थी, कार्तिक पूर्णिमा (गंगास्नान), गणतंत्र दिवस, स्वतंत्रता दिवस, अंबेडकर जयंती, गाँधी जयंती, गुरुनानक, कबीर, तुलसी, रैदास, गुरुपूर्णिमा आदि अनेक त्योहार हमारे देश में मनाये जाते हैं। इससे मानवता का विकास होता है, समाज उन्नत होता है। सार्वजनिक जीवन आनन्दपूर्ण जीने की प्रेरणा देता है।
पर्व मनाने से लाभ – परस्पर एकता, प्रेम, दया, सेवा, एकरसता, एकात्मकता, त्याग, एकरूपता, सेवादर्श आदि में त्योहारों का महत्त्व है। त्योहार मनाने से सम्पूर्ण मानव समाज को धार्मिक-सामाजिक राष्ट्रीयता के साथ सुख-समृद्ध और विकास आदि की प्रेरणा मिलती है। इस प्रकार, त्योहार मानव समाज के लिए प्राण है जो बन्धुत्व की भावना बढ़ाता है।
पर्व मनाने के कारण हानि– पर्व मनाने की प्राचीन परम्परा अब लुप्त होती जा रही है। आजकल लोग अनियंत्रित तथा देख – दिखावा के रूप में पर्व मनाने लगे हैं, जिससे बेमतलब खर्च बढ़ते हैं तथा लोगों के बीच पारस्परिक सौहार्द्र के बदले वैमनस्य एवं कटुता बढ़ती है।
उपसंहार — हमारे देश में एकता में विविधता और विविधता में एकता है । सभी समुदाय, सम्प्रदाय, जाति, धर्म, वर्ग-वर्ण के लोग कोई न कोई त्योहार अवश्य मनाते हैं। इस देश को तो त्योहारों का देश भी कहा जाता है। अतः कहा जा सकता है कि हमारे देश के त्योहार विशुद्ध प्रेम, बन्धुत्व तथा सद्भावना को बल प्रदान करते हैं।