दुर्गापूजा – Dussehra

भूमिका — राम ने रावण के दसों सिर काट दिए, इसलिए यह त्योहार ‘दशहरा कहलाता है। दुर्गा ने महिषासुर का नाश किया । इसलिए हम इसे ‘दुर्गापूजा’ कहते हैं। दोनों ने अत्याचारियों पर विजय पाई, इसलिए ‘विजयादशमी’ कहते हैं ।

इतिहास – दुर्गा दुर्गतिनाशिनी है । महिष नामक असुर का दमन किया, इसलिए ‘महिषासुर मर्दिनी’ कहते हैं । इस तरह दुर्गा ने जिन राक्षसों का विनाश किया उसी नाम से वे जानी जाती हैं, जैसे- ‘शुभ-निशुंभ मर्दनी’, ‘चामुंडा’ आदि ।

आयोजन — यह त्योहार वर्षा ऋतु के अंत में आश्विन महीने के शुक्ल पक्ष ( सितम्बर – अक्टूबर) में प्रतिपदा से दशमी तक मनाया जाता है । इस अवसर पर नवरात्रि मनाते हैं और ‘दुर्गा सप्तशती’ का पाठ करते हैं । ‘दुर्गा सप्तशती’ में दुर्गा की महिमा का वर्णन है। दुर्गाजी की प्रतिमा बिठाई जाती है। उनकी पूजा अष्टमी एवं नवमी को धूमधाम के साथ की जाती है। दशमी को शोभा यात्रा निकलती है और इनकी प्रतिमा को गाँव या नगर में घुमाकर नदी में विसर्जन कर दिया जाता है । इस अवसर पर रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद के पुतले भी जलाए जाते हैं । दशमी को राम-लक्ष्मण दोनों मिलकर तीनों का वध करते हैं । वाणों के नाभि में लगते ही पुतले धू-धू कर जल उठते हैं और पटाखों से कान बहरे हो जाते हैं । पुतलों को जलाने से पहले आतिशबाजी होती है। इस अवसर पर मेला भी आयोजित होता है । दूसरे दिन ‘भरत मिलाप’ होता है ।

धार्मिक कथा — वैसे तो, अनेक धार्मिक कथाएँ विभिन्न तरह से बताई जाती है, जो वेद, पुराण, देवी भागवत, उपनिषद आदि में वर्णित है। लेकिन हमारे यहाँ जो कथा प्रचलित है उसमें कहा जाता है कि लंकापति रावण दंशी – अभिमानी, पापी आतताई; लेकिन शिवाशीष से अपराजेय था। अतः भगवान राम ने माँ दुर्गा से आशीर्वाद लेकर उसका संहार किया। चूँकि उसका दस आनन था इसलिए दशहरा और दशमी तिथि को रावण पर विजयी प्राप्त की, इसलिए विजयादशमी के नाम से भी इस पर्व को मनाते हैं।

लाभ – कोई भी त्योहार सामाजिक सौहार्द्र, मैत्रीभाव, बन्धुत्व को बढ़ाता है। लेकिन सबसे बड़ी सोच यह है कि राष्ट्र की सबलता जिन बातों पर निर्भर करता है, वह है, संपत्ति, विद्या, ज्ञान, शारीरिक आदि; बलों के समुचित रूप में विद्यमान होना। यहाँ दुर्गा के साथ सरस्वती विद्याबल, लक्ष्मी-संपत्तिबल, गणेश – ज्ञानबल, कार्तिकेय – पशुधनबल के साथ ही साथ लोगों की एकजुटता शारीरिक बल का होना राष्ट्रबल का प्रतीक बन जाता है।

हानि – इस त्योहार की कुछ हानियाँ भी है; जैसे – मूर्ति के लिए मिट्टी कटने से मृदा प्रदूषण, ऊच्च ध्वनि तरंगों में ध्वनिविस्तारक यंत्रों का बजाना ध्वनि प्रदूषण, हवन से निकलने वाले धुएँ से वायु प्रदूषण, समाप्ति के जलसमाधि से जल प्रदूषण मुख्य हानियाँ तो है ही चंदा उगाही को लेकर कुछ दबंग लोगों द्वारा बल का प्रयोग सामाजिक वैमनस्य पैदा करता है। इसके अलावे मेला में भीड़ जुटने से कई प्रकार का आपराधिक व साम्प्रदायिक दुर्घटना भी दुर्योगवश हो जाया करती है।

उपसंहार — दुर्गा का महात्म्य इतना है कि उसका बखान शब्दों द्वारा संभव नहीं है। ‘दुर्गा सप्तशती’ में इनके सात सौ नामों का उल्लेख इनके अपार गुणों की ओर ध्यान आकृष्ट करता है ।