प्रदूषण की समस्या – Pradushan ki Samasya

भूमिका – प्रदूषण का अर्थ है – प्राकृतिक संतुलन में दोष पैदा होना । न शुद्ध वायु मिलना, न शुद्ध जल मिलना, न शुद्ध खाद्य मिलना, न शांत वातावरण मिलना । प्रदूषण कई प्रकार का होता है ।

प्रदूषण के कारण- प्रदूषण को बढ़ाने में कल-कारखाने, वैज्ञानिक साधनों का अधिकाधिक उपयोग, फ्रिज, कूलर, वातानुकूलन, ऊर्जा संयंत्र और सड़क जाम की कमजोर व्यवस्था आदि दोषी हैं । वृक्षों को अंधाधुंध काटने से मौसम का चक्र बिगड़ा है । घनी आबादी वाले क्षेत्रों में हरियाली न होने से भी प्रदूषण बढ़ा है I

प्रदूषण के प्रकार – वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, ध्वनि-प्रदूषण तथा नाभिकीय प्रदूषण आदि ।

प्रदूषण के परिणाम / प्रकृति और मानव पर कुप्रभाव — उपर्युक्त प्रदूषणों के कारण मानव के स्वस्थ जीवन को खतरा पैदा हो गया है। खुली हवा में लंबी साँस लेने तक को तरस गया है आदमी। गंदे जल के कारण कई बीमारियाँ फसलों में चली जाती हैं जो मनुष्य के शरीर में पहुँचकर घातक बीमारियाँ पैदा करती हैं । पर्यावरण प्रदूषण के कारण न समय पर वर्षा आती है, न सर्दी-गर्मी का चक्र ठीक चलता है। सूखा, बाढ़, ओला आदि प्राकृतिक प्रकोपों के कारण भी प्रदूषण है।

प्रदूषण से निदान / बचाव के उपाय / प्रदूषण के कारण और रोकथाम उपाय— विभिन्न प्रकार के प्रदूषणों से बचने के लिए चाहिए कि अधिकाधिक वृक्ष लगाए जाएँ, हरियाली की मात्रा अधिक हो । सड़कों के किनारे घने वृक्ष हों । आबादी वाले क्षेत्र खुले हों, हवादार हों, हरियाली से ओतप्रोत हों । कल-कारखानों को आबादी से दूर रखना चाहिए और उनसे निकले प्रदूषित अवशिष्ट को नष्ट करने के उपाय सोचना चाहिए।

निष्कर्ष / उपसंहार– भूमि को स्वच्छ रखना चाहिए। हरियाली बनाए रखने का हर संभव प्रयास किया जाना चाहिए। धूल-मिट्टी उड़ने से भी प्रदूषण बढ़ता है। इसपर भी काबू पाना चाहिए। आबादी नियंत्रण करने से प्रदूषण का खतरा कम होता है। प्रदूषण के प्रति जन-चेतना जाग्रत करना आवश्यक है।