पुस्तकों का महत्व – Pustakon ka Mahatva

पुस्तकें : हमारी मित्र — पुस्तक व्यक्ति का सच्चा साथी तथा मित्र होती है। यह बिना किसी अपेक्षा के व्यक्ति का सहयोगी तथा उत्तम गुरु जैसा मार्गदर्शक होती है। पुस्तकें व्यक्ति के नेत्र को उन्मीलित कर पथ प्रशस्त करती हैं। पुस्तकें दुख-सुख सभी समय व्यक्ति को साथ देती हैं। ये सच्चे मित्र की तरह व्यक्ति के दुर्गुणों को दूर कर उसमें सद्गुण पैदा करती हैं।

पुस्तकें : प्रेरणा के स्रोत– पुस्तकों से व्यक्ति को सही दिशा में सही प्रेरणा मिलती है। महापुरुषों से सम्बद्ध पुस्तकें पढ़कर व्यक्ति महानता प्राप्त कर लेता है। वैसी पुस्तकें जिनमें व्यवस्थित ज्ञान हो, उन्हें पढ़कर व्यक्ति व्यवस्थित होता है और उसे आगे बढ़ने की सही प्रेरणा प्राप्त होती है। इस प्रकार, विभिन्न पुस्तकें विभिन्न प्रेरणाओं का स्त्रोत होती हैं।

पुस्तकें : विकास का सूत्रधार – पुस्तकें ज्ञान के भंडार हैं। विभिन्न पुस्तकों में विभिन्न प्रकार के ज्ञान संचित रहते हैं, जो व्यक्ति को विकास का मार्गदर्शन कराते हैं। जीवन के विकास के लिए ज्ञान-विज्ञान की उपलब्धि पुस्तकों से ही होती है। जो व्यक्ति पुस्तकों को अपना मित्र बना लेता उसे हर क्षण उनका सहयोग प्राप्त होता रहता है। इस प्रकार, पुस्तकें विकास का सूत्रधार होती हैं।

प्रचार का साधन — सभी प्रकार के प्रचार-साधनों में पुस्तकों का स्थान सर्वोच्च है। प्रचार के अन्य साधन अधिक स्थायी नहीं होते जबकि पुस्तकें प्रचार के स्थायी साधन होती हैं। पुस्तकों में सुसम्बद्ध विचार रहते हैं जिससे किसी विषय या वस्तु का सुसम्बद्ध प्रचार भी होता है, जो व्यक्ति के मस्तिष्क को पूर्ण रूप से प्रभावित करता है। यह प्रचार व्यक्ति पर गहरा प्रभाव पैदा करता है तथा उसे स्थायी रूप से प्रभावित करता है।

मनोरंजन का साधन — विभिन्न प्रकार की पुस्तकें विभिन्न प्रकार से व्यक्ति का मनोरंजन करती हैं। खेल से मनोरंजन करनेवालों के लिए खेल की पुस्तकें हैं, भ्रमण करनेवालों के लिए भ्रमण की पुस्तकें हैं। ज्ञान-विज्ञान चाहनेवालों के लिए ज्ञान-विज्ञान की पुस्तकें हैं और गप-शप, सिनेमा, नाटक, तमाशे आदि से मनोरंजन करनेवालों के लिए इस प्रकार की पुस्तकें भी होती हैं और सही मायने में कहा जाय तो पुस्तक पढ़ने जैसा मनोरंजन का साधन दूसरा नहीं है, जो व्यक्ति को स्वस्थ मनोरंजन देता है। इस प्रकार, पुस्तकें व्यक्ति का सच्चा मित्र, सच्चा गुरू, प्रेरणा का स्त्रोत, विकासव का सूत्रधार, प्रचार का साधन और स्वस्थ मनोरंजन का साधन होती हैं, जो हमेशा उसके पास उपलब्ध होती हैं।

उपसंहार — रामचरितमानस की भाषा अवधी है । इसे दोहा – चौपाई शैली में लिखा गया है। इसका एक – एक छंद रस और संगीत से परिपूर्ण है । इसकी रचना को लगभग 500 वर्ष हो चुके हैं। फिर भी आज इसके अंश मधुर कंठ से गाए जाते हैं ।