बेरोजगारी का अभिप्राय — बेरोजगारी का अर्थ है – ” योग्यता के अनुसार काम का न होना ।” भारत में मुख्यतया तीन प्रकार के बेरोजगार हैं । एक वे, जिनके पास आजीविका का कोई साधन नहीं है । वे पूरी तरह खाली हैं । दूसरे, जिनके पास कुछ समय काम होता है, परंतु मौसम या काम का समय समाप्त होते ही वे बेकार हो जाते हैं । ये आंशिक बेरोजगार कहलाते हैं। तीसरे वे; जिन्हें योग्यता के अनुसार काम नहीं मिला ।
बेरोजगारी की समस्या — भारत बेरोजगारी की विकट समस्या से जूझ रहा है। बेरोजगारी की समस्या कितनी विकराल होती जा रही है, इसका कुछ-कुछ अंदाजा देश के विभिन्न नियोजनालयों में निबंधित बेरोजगारों की संख्या से लगाया जा सकता है। यदि किसी कार्यालय में पाँच-दस पद रिक्त होते हैं तो उनके लिए हजारों-हजार उम्मीदवार अपने-अपने भाग्य की आजमाइश करते हैं। अर्थशास्त्रियों ने आँकड़ों के आधार पर यह सिद्ध किया है कि भारत में प्रतिवर्ष लगभग साठ लाख लोग बेरोजगार होते जा रहे हैं।
बेरोजगारी के कारण — त्रुटिपूर्ण शिक्षा और कुटीर उद्योगों के समुचित विकास न होने के अलावा एक कारण और है- परंपरागत ढंग से कृषि और कृषि योग्य भूमि का विकास न होना। हमारी अर्थव्यवस्था भी बेकारी बढ़ाने में कम दोषी नहीं है। लघु उद्योगों को समुचित प्रोत्साहन नहीं मिलता, इसमें भ्रष्टाचार व्याप्त है। फिर बाजार में काले धन की मौजूदगी भी बेकारी का कारण है।
विकास में बाधक—– जनसंख्या की बेतहाशा वृद्धि से बेकारी दूर करने की योजनाएँ धरी की धरी रह जाती हैं। योजना बनाती है पचास लाख को रोजगार देने की और तब तक बेरोजगारों की संख्या में पाँच लाख का इजाफा हो जाता है।
समाधान— बेकारी का समाधान तभी हो सकता है, जब जनसंख्या पर रोक सरकार लघु उद्योगों को प्रोत्साहन दे । अधिकाधिक अवसर जुटाए जाएँ । लगाई जाए। युवक हाथ का काम करें। शिक्षा व्यवसाय से जुड़े तथा रोजगार के