छात्र और अनुशासन – Chhatra aur Anushasan

भूमिका- अनुशासन का अर्थ है-व्यवस्था, क्रम और आत्म-नियंत्रण। यह एक ऐसा गुण है जो समय की बचत करता है, धन और शक्ति का अपव्यय रोकता है तथा अतिरिक्त बल पैदा करता है। अनुशासन का मानव-जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है।      जीवन को आनंदपूर्वक जीने के लिए विद्या और अनुशासन दोनों आवश्यक हैं विद्या का अंतिम लक्ष्य है- इस जीवन को मधुर तथा सुविधापूर्ण बनाना । अनुशासन का भी यही लक्ष्य है ।

अनुशासन भी एक प्रकार की विद्या है। अपनी दिनचर्या को, अपनी बोल-चाल को, अपने रहन-सहन को, अपने सोच-विचार को, अपने समस्त व्यवहार को व्यवस्थित करना ही अनुशासन है । एक अनपढ़ गँवार व्यक्ति के जीवन में क्रम और व्यवस्था नहीं होती, इसीलिए उसे असभ्य, अशिक्षित कहा जाता है। पढ़े-लिखे व्यक्ति से यही अपेक्षा की जाती है कि उसका सबकुछ व्यवस्थित हो । अतः अनुशासन विद्या का एक अनिवार्य अंग है।

छात्रजीवन में अनुशासन का महत्त्व / अनुशासन का महत्त्व – अनुशासन से संयम आता है तथा सभ्यता का प्रारंभ होता है। आज की नवीन सभ्यता अनुशासन की ही देन है। ग्रामीण सभ्यता में कोई रहन-सहन का व्यवस्थित तरीका नहीं, बोल-चाल में अनुशासन नहीं, इसलिए वे पिछड़ जाते हैं। दूसरी ओर शहरी सभ्यता में हर चीज की एक व्यवस्था है, बोलने का कार्य करने में एक नियमित क्रम है, इसलिए आज उसका आकर्षण है।

विद्यार्थी के लिए अनुशासित होना परम आवश्यक है। अनुशासन से विद्यार्थी को सब प्रकार का लाभ ही होता है । अनुशासन अर्थात् निश्चित व्यवस्था से समय और धन की बचत होती है। जिस छात्र ने अपनी दिनचर्या निश्चित कर ली है, उसका समय व्यर्थ नहीं जाता। वह अपने एक-एक क्षण का समुचित उपयोग उठाता है । वह समय पर मनोरंजन भी कर लेता है तथा अध्ययन भी पूरा कर पाता है । इसके विपरीत अनुशासनहीन छात्र आज का काम कल पर और कल का काम परसों पर टालकर अपने लिए मुसीबत इकट्ठी कर लेता है ।

अनुशासनहीनता के कारण / अनुशासन के अभाव में उच्छृंखलता – आज भारत के जन-जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अनुशासनहीनता दृष्टिगोचर हो रही है। विद्यार्थी की रुचि पढ़ाई की ओर नहीं है। अनुशासनहीनता के कारण है – आज का विद्यार्थी साज-श्रृंगार, सुख – आराम की इच्छा । दूसरी बात माता – पिता द्वारा अच्छी तरह ध्यान नहीं देना, खराब संगत ।

सुधार के उपाय – अनुशासन का गुण बचपन में ही ग्रहण किया जाना चाहिए । इसलिए इसका संबंध छात्र से है । विद्यालय की सारी व्यवस्था में है। विद्यालय की सारी व्यवस्था में अनुशासन और नियमों को लागू करने के पीछे यही बात है । यही कारण है कि अच्छे अनुशासित विद्यालयों के छात्र जीवन में अच्छी सफलता प्राप्त करते हैं। अनुशासन हमारी अस्त-व्यस्त जिंदगी को साफ-सुथरी तथा सुलझी हुई व्यवस्था देता है । इसके कारण हमारी शक्तियाँ केंद्रित होती हैं। हमारा जीवन उद्देश्यपूर्ण बनता है तथा हम थोड़े समय में ही बहुत काम कर पाते

अनुशासन ही छात्र को सही दिशा दिखलाता है / अनुशासन का मार्गदर्शन- छात्रों को अनुशासनप्रिय होना अत्यन्त आवश्यक है, क्योंकि अनुशासन ही छात्र को सही दिशा दिखला सकता है। शिक्षकों और गुरुजनों के अनुशासन में रहकर ही छात्र समुचित रीति से विद्या ग्रहण करते हैं और अपने चरित्र को उन्नत बनाते हैं। छात्र अनुशासन की संस्कृति से लाभान्वित होकर ही विश्व में अपने यश की सुगन्ध फैला सकते हैं।

अनुशासनहीनता के दुष्प्रभाव – अब मानव-मन की हौच – पौच को लें। एक छात्र को एक ही समय पर विवाह की पार्टी में भी जाना है, क्रिकेट का मैच भी खेलना है, दूरदर्शन पर आयी फिल्म को भी देखना है और कल होने वाली परीक्षा की तैयारी भी करनी है। इस अस्त-व्यस्त मनःस्थिति में प्राय: छात्र लटक जाते हैं। वे एक साथ चारों ओर मन लगाकर किसी भी एक कार्य को ध्यान से नहीं कर पाते। यदि कोई छात्र अनुशासन का अभ्यासी हो तो वह अवश्य ही संयम करके चारों के गुण-दोष का विचार करके किसी एक ओर अपना ध्यान लगा लेगा तथा शेष की ओर से अपना मन हटा लेगा। इस हौच – पौच मनःस्थिति में से यही एक उत्तम रास्ता है।

निष्कर्ष / उपसंहार – अनुशासन से शक्तियों का केंद्रीकरण होता है, गतिशील ऊर्जा का जन्म होता है तथा जीवन सहज, सरल और सुंदर बन जाता है। अनुशासन का अर्थ बंधन नहीं है । उसका अर्थ है – व्यवस्था । हाँ, उस व्यवस्था के लिए कुछ अनुचित इच्छाओं से छुटकारा पाना पड़ता है । उनसे छुटकारा पाने में ही लाभ है। छात्र यदि सभ्य बनने के लिए अपनी गलत आदतों पर रोक लगाते हैं, तो वह लाभप्रद ही है । अतः अनुशासन जीवन के लिए परमावश्यक है तथा उसकी प्रथम पाठशाला है – विद्यार्थी जीवन |