हमारी प्रिय पुस्तक – Hamari Priya Pustak

भूमिका — पुस्तकें तो बहुत हैं लेकिन कुछ पुस्तकें ऐसी हैं जो सदियों तक लोगों के गले का हार बनी हों। । ‘रामचरितमानस’ वैसी ही पुस्तक है जो सदियों से भारत के जन-मन को लुभाती है और भक्ति भाव से सराबोर करती है ।

पुस्तक का वर्ण्य विषय — ‘रामचरितमानस’ में दशरथ- पुत्र राम की जीवन-कथा का वर्णन है । श्रीराम के जीवन की प्रत्येक लीला मन को भाने वाली है। उन्होंने किशोर अवस्था में ही राक्षसों का वध और यज्ञ-रक्षा का कार्य जिस कुशलता से किया है, वह मेरे लिए अत्यंत प्रेरणादायक है। उनकी वीरता और कोमलता के सामने मेरा हृदय श्रद्धा से झुक जाता है।

प्रिय पुस्तक होने का कारण — बालकांड, अयोध्याकांड, अरण्यकांड, किष्किंधा- कांड, सुन्दरकांड, लंकाकांड और उत्तरकांड में बाँटकर, दोहा – चौपाई के माध्यम से बड़े ही भावपूर्ण और मनोरंजन ढंग से प्रस्तुत करते हुए हिन्दू धर्म का सच्चा स्वरूप राम के माध्यम से उपस्थित किया गया है । धर्म और समाज, राजा – प्रजा, ऊँच-नीच, द्विज- शूद्र एवं पुत्र के साथ माता-पिता का, भाई-बहन, गुरु-शिष्य आदि का सामाजिक और धार्मिक संबंध कैसा होना चाहिए यह सब इस ग्रंथ में संगुफित है । जहाँ इसमें रावण जैसा अत्याचारी है, वहाँ लक्ष्मण और भरत जैसे भाई भी हैं, कौशल्या जैसी माता हैं तो अनन्य सेवक हनुमान हैं, सीता जैसी आदर्श पत्नी है, तो शूर्पणखा जैसी उच्छृंखल युवती भी है, और वशिष्ठ एवं विश्वामित्र जैसे आदर्श गुरु भी हैं।

इस ग्रंथ में सभी रसों का परिपाक हुआ है । बालकांड में वात्सल्य और श्रृंगार रस है तो अयोध्या कांड में करुण रस । इसी प्रकार, सुन्दरकांड में शान्त रस तो लंकाकांड में रौद्र, वीर और बीभत्स रस । छन्दों और अलंकारों की छटा तो देखते ही बनती है । सगुण, निर्गुण, शैव-वैष्णव, भक्ति और ज्ञान के साथ लोक और शास्त्र का अद्भुत संगम है।

पुस्तक का संदेश- यह पुस्तक केवल धार्मिक महत्त्व की नहीं है । इसमें मानव को प्रेरणा देने की असीम शक्ति है । इसमें राजा, प्रजा, स्वामी, दास, मित्र, पति, नारी, स्त्री, पुरुष सभी को अपना जीवन उज्ज्वल बनाने की शिक्षा दी गई है ।

तुलसीदास ने प्रायः जीवन के सभी पक्षों पर सूक्तियाँ लिखी हैं। इनके इन अनमोल वचनों के कारण यह पुस्तक अमरता को प्राप्त हो गई है ।

उपसंहार — रामचरितमानस की भाषा अवधी है । इसे दोहा – चौपाई शैली में लिखा गया है। इसका एक-एक छंद रस और संगीत से परिपूर्ण है । इसकी रचना को लगभग 500 वर्ष हो चुके हैं । फिर भी आज इसके अंश मधुर कंठ से गाए जाते हैं ।