मेरा प्रिय खेल – Mere Priya Khel

भूमिका- खेल का अर्थ होता है आनन्द मनाना, क्रीड़ा करना या मन बहलाना जो जीवन का परम लक्ष्य है। जीवन की सारी क्रियाएँ हमलोग इसी आनन्द के लिए करते हैं, जैसे-खाना, पीना, सोना या अन्य काम-धंधा करना । किन्तु अन्य क्रियाओं की अपेक्षा खेल विशुद्ध आनन्द देता है क्योंकि खेल में उन्मुक्तता होती है जबकि अन्य क्रिया करने की बाध्यता होती है। मुझे सबसे अधिक आनन्द फुटबॉल से मिलता है, इसलिए यह मेरा प्रिय खेल है।

खेल का महत्त्व – खेल को सबसे बड़ा महत्त्व है कि खेल व्यक्तित्व का निर्माता होता है, यह व्यक्ति के व्यक्तित्व एवं चरित्र का दर्पण भी होता है। यदि कोई व्यक्ति खेल में भी बेइमानी करता है तो समझिए कि वह दूषित व्यक्ति है। खेल में कोई लड़ाई करता है तो समझिए कि वह आक्रामक है। खेल को अगर कोई व्यवसाय के रूप में अपनाता है तो समझिए कि वह व्यवसायी है। अगर कोई सहयोगात्मक रूप से खेलता है तो समझिए कि वह सहयोगी प्रकृति का है। अगर कोई जुआ खेलता है तो समझिए कि वह व्यसनी है।

खेल से लाभ – खेल सच्चा आनंद देता है, शरीर तथा मन को स्वस्थ तथा सबल बनाता है एवं सामाजिक – राष्ट्रीय संगठन को दृढ़ करता है। खेल जीवन के लक्ष्य की प्राप्ति में भी सहायक होता है ।

खेल से हानि- खेल में अगर कोई स्वच्छ मन से शरीक होता है तो इससे कुछ खास हानि नहीं होती। हाँ, कुछ लोग अपना सारा समय खेल में ही गँवा देते हैं। कुछ खेल ऊब भी पैदा करते हैं। जुआ खेलना, कुछ गलत आदत बना लेना आदि खेल की हानियाँ हैं।

उपसंहार — हमें खेल को स्वच्छ मन से खेलना चाहिए तथा इसमें समय को व्यर्थ बर्बाद नहीं करना चाहिए तभी हम सच्चा आनन्द तथा जीवन की उपलब्धि प्राप्त कर सकते हैं।