मित्रता – Mitrata

भूमिका – मनुष्य स्वयं में अधूरा है। उसे अपने सुख-दुःख बाँटने के लिए तथा अपने मन की बात कहने के लिए भागीदार की आवश्यकता पड़ती है। सच्चा मित्र ही इस कार्य को कर सकता है।

मित्र चयन में सतर्कता – सच्ची मित्रता बनाए रखने के लिए जागरूकता आवश्यक है। यह देखना आवश्यक है कि क्या हमारा मित्र हमारा हितैषी है? हमें सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है? दोषों से हमारी रक्षा करता है? निराशा में उत्साह देता है? शुभ कार्यों में सहयोग तथा विपत्तियों में सहायता करता है, या नहीं?

सच्चे मित्र से लाभ – सच्चा मित्र जीवन में सफलता की कुंजी है । मित्रता वास्तव में एक नई शक्ति की योजना है। मित्र के सुख और सौभाग्य की चिंता करनेवाला सच्चा मित्र बड़े भाग्य से मिलता है। किसी ने ठीक ही कहा है- ‘सच्चा प्रेम दुर्लभ है, सच्ची मित्रता उससे भी दुर्लभ । ‘

बुरे मित्र से हानि – बुरे मित्र से जीवन में असफलता ही मिलती है। बुरे मित्र सुख और सौभाग्य की चिन्ता करनेवाला नहीं होता है। वह पग-पग पर धोखा देता है।

उपसंहार – यह सभी जानते हैं कि जीवन एक संग्राम है। इसमें समय-समय पर तरह-तरह की विपत्तियाँ आती हैं। उन विपत्तियों में हमें परम सहायक मित्र की आवश्यकता होती है। पंचतंत्र में कहा गया है – ” जो व्यक्ति न्यायालय, श्मशान और विपत्ति के समय साथ देता है उसको सच्चा मित्र समझना चाहिए। “