एकता में बल है – पारिवारिक जीवन की तरह सामाजिक तथा राष्ट्रीय जीवन में भी एकता का महत्त्वपूर्ण स्थान है । वहाँ भी यह सिद्धान्त दृढ़तापूर्वक कार्यशील रहता है। कि “United we have, separated we die. ” जिस तरह वियुक्त परिवार विच्छिन्न हो जाता है, उसी तरह विखण्डित राष्ट्र भी क्षीण हो जाता है।
राष्ट्र के लिए एकता आवश्यक– राष्ट्र के सब घटकों में भिन्न विचारों और भिन्न आस्थाओं के होते हुए भी आपसी प्रेम, एकता और भाईचारे का बना रहना अर्थात् देश में भिन्नताएँ हों, फिर भी सभी नागरिक राष्ट्र-प्रेम से ओतप्रोत हों । देश के नागरिक पहले ‘भारतीय’ हों, फिर हिंदू या मुसलमान । राष्ट्रीय एकता का भाव देशरूपी भवन में सीमेंट का काम करता है ।
एकता के बाधक तत्व — भारत की राष्ट्रीय एकता के लिए अनेक खतरे हैं । सबसे बड़ा खतरा है- कुटिल राजनीति । यहाँ के राजनेता ‘वोट-बैंक’ बनाने के लिए कभी अल्पसंख्यकों में अलगाव के बीज बोते हैं, कभी आरक्षण के नाम पर पिछड़े वर्गों को देश की मुख्य धारा से अलग करते हैं। इस देश के हिंदू, मुसलमान, सिख, ईसाई सभी परस्पर प्रेम से रहना चाहते हैं, लेकिन भ्रष्ट राजनेता उन्हें बाँटकर रखना चाहते हैं । राष्ट्रीय एकता में अन्य बाधक तत्त्व हैं- विभिन्न धार्मिक नेता, जातिगत असमानता, आर्थिक असमानता आदि ।
एकता तोड़ने के दोषी— एकता तोड़ने के दोषी राजनेता, धार्मिक नेता, विभिन्न जातियों, विभिन्न वर्गों, विभिन्न सम्प्रदायों और विभिन्न भाषाओं के लोग हैं.
एकता दृढ़ करने के उपाय- देश में सभी असमानता लाने वाले कानूनों को समाप्त किया जाए। मुस्लिम पर्सनल लॉ, हिंदू कानून आदि अलगाववादी कानूनों को तिलांजलि दी जाए। उसकी जगह एक राष्ट्रीय कानून लागू किया जाए। सब नागरिकों को एक समान अधिकार प्राप्त हों। किसी को किसी नाम पर भी विशेष सुविधा या विशेष दर्जा न दिया जाए। भारत में तुष्टिकरण की नीति बंद हो ।