भूमिका – विद्या प्राप्त करने वाला विद्यार्थी कहलाता है। आदर्श विद्यार्थी वह है जो स्वभाव से ही विद्या- अनुरागी और विद्या – व्यसनी हो, पढ़ना उसका शौक हो और ज्ञानार्जन उसका लक्ष्य। बाल्यकाल विद्याध्ययन के लिए महत्त्वपूर्ण समय है। इस काल में वह संसार की सभी चिन्ताओं से मुक्त हो विद्याध्ययन कर सकता है। जो विद्यार्थी अपने बाल्यकाल का विद्याध्ययन में उपयोग करता है वह दूसरों से आगे बढ़ जाता है।
अच्छे विद्यार्थी के गुण — अच्छा विद्यार्थी परिश्रमी, अनुशासनप्रिय, सत्यनिष्ठ, परोपकारी और सच्चरित्र होता है। आदर्श विद्यार्थी अध्ययनशील होता है। अपने शरीर, मन और बुद्धि के विकास को ही वह अपना लक्ष्य मानता है और सम्पूर्ण विकास के लिए नियमित अध्ययन को आवश्यक समझता है। अध्ययन के साथ-साथ वह अपने शरीर को चुस्त-दुरुस्त रखता है। उसका व्यवहार श्लाघनीय होता है। वह बड़ों का सम्मान और छोटों से स्नेहपूर्ण व्यवहार करता है।
सहपाठियों से अच्छा व्यवहार — आदर्श विद्यार्थी सहपाठियों से अच्छा व्यवहार करता है। वह लड़ाई-झगड़ों से दूर रहता है और अनुशासन का पूरा-पूरा पालन करता है। वह अपने सहपाठियों से अभद्र व्यवहार नहीं करता है।
गुरुजनों के प्रति श्रद्धा एवं आज्ञाकारिता – आदर्श विद्यार्थी अपने गुरुजनों की आज्ञा का पालन करता है। उनके प्रति श्रद्धा एवं निष्ठा की भावना रखता है। उनके द्वारा कही गई बातों पर अमल करता है।
उपसंहार — आदर्श विद्यार्थी होना सरल कार्य नहीं है, पर प्रयत्न करने पर वे गुण विकसित किये जा सकते हैं जो विद्यार्थी को आदर्श विद्यार्थी बनाने में सहायक होते हैं। सच्चाई तो यह है कि जो चीज जितनी महत्त्वपूर्ण होती है, उसके लिए उतना ही अधिक मूल्य चुकाना होता है। उसे पाने में उतनी ही अधिक सावधानी बरतनी होती है और परिश्रम करना पड़ता है। इसलिए यदि विद्यार्थी जीवन के प्रारम्भ से ही अनुशासनप्रिय हों, समय का सदुपयोग करें, सहिष्णुता और सच्चरित्रता के गुणों को अपने जीवन में ढालने का प्रयत्न करें तो वे अवश्य ही आदर्श विद्यार्थी बन सकते हैं। ऐसी स्थिति में उनका जीवन दूसरों के लिए भी अनुकरणीय बन जाता है।