भूमिका – बहुचर्चित औद्योगिक क्रांति के बाद उद्योगों का चक्का तीव्र गति से घूमने लगा। इस क्रांति ने उद्योगों के यंत्रीकरण को अत्यधिक बढ़ावा दिया। क्रमिक रूप से वाष्प-शक्ति और बिजली के आविष्कार ने यंत्रीकरण को बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। आज जीवन का घरेलू मामला हो अथवा औद्योगिक, सर्वत्र बिजली की भूमिका अपरिहार्य है।
बिजली ऊर्जा का महत्त्वपूर्ण स्रोत- आज के जीवन में शारीरिक श्रम का स्थान घटता जा रहा है। गाँव हो या शहर, कारखाना हो या खेत-खलिहान बिजली ऊर्जा का महत्वपूर्ण स्रोत है। इसके बिना कहीं काम नहीं चलता ।
घर, कार्यालय, कारखाना, यातायात सब बिजली पर निर्भर — घर में पानी के लिए मोटर, पंखे, हीटर, गीजर, वाशिंग मशीन, मिक्सर, प्रकाश आदि सबके लिए बिजली की आवश्यकता होती है। खेती के आधुनिक मशीन भी बिजली से चलते हैं तथा कल-कारखानों एवं बाजारों में भी बिजली ही ऊर्जा के महत्त्वपूर्ण तथा प्रमुख स्रोत हैं। शिक्षा तथा चिकित्सा जगत् में भी प्रकाश के अतिरिक्त कम्प्यूटर आदि मशीनों के लिए बिजली अपरिहार्य है। सभी कार्यालय तथा यातायात भी बिजली पर निर्भर हैं।
खपत अधिक उत्पादन कम — बिजली की अधिक खपत आर्थिक समृद्धि का एक आधार भी माना जाता है। सरकार बिजली के उपयोग को बढ़ावा भी देती है। किन्तु, स्थिति यह है कि हमें आवश्यकता के अनुसार बिजली नहीं मिल पाती। इसलिए, जब-तब आपूर्त्ति बाधित होती है और सब काम ठप हो जाता है। इसका कारण है खपत अधिक तथा उत्पादन कम होना।
अधिक उत्पादन एवं सही वितरण की आवश्यकता — बिजली के बढ़ते उपयोग के लिए इसके अधिक उत्पादन की आवश्यकता है। सरकार इसके लिए प्रयत्नशील भी है और कई नये थर्मल पावर स्टेशन की स्थापना की गई है किन्तु उनके क्रियाशील होने में अधिक समय लगता है। दूसरी ओर इसके सही वितरण की आवश्यकता भी है। घरों में लोग बिजली का अनावश्यक खर्च करते हैं, बाजरों में एक – एक दुकानों में 50-50 बल्ब तथा पंखे चलते देखे जाते हैं। अन्य दफ्तरों या स्थानों में भी अनावश्यक बिजली खर्च होती है। इन्हें नियंत्रित कर सही वितरण की आवश्यकता है।
उपसंहार — बिजली ऊर्जा का महत्त्वपूर्ण स्रोत तथा राष्ट्रीय महत्त्व का साधन है। इसलिए मितव्ययिता के साथ इसका उपयोग करना चाहिए ताकि सबके सभी काम आवश्यकतानुसार सम्पन्न हो सकें।