नारी – शिक्षा : आज की आवश्यकता – Nari Shiksha Aaj Ki Avashyakta

भूमिका – भारत में नारी को देवी के रूप में देखा जाता है। नारी का हृदय धरा समान होता है। अनेक कष्ट सहकर भी वह पुरुष को कष्ट नहीं होने देती है। प्राचीन काल में अनुसूया, लीलावती, मैत्रेयी, अत्रि, गार्गी आदि नारियों के अस्तित्व को देखते हुए कहा जा सकता है कि वैदिक युग में हमारे देश की नारियाँ उच्च शिक्षित थीं। सभी माँगलिक कार्य नारी बिन अधूरा है। देवताओं ने भी नारी का सम्मान किया है। 

नारी शिक्षा का महत्त्व — नर और नारी समाजरूपी रथ के दो पहिए हैं। दोनों का समान रूप से शिक्षित होना आवश्यक है। समाज के कुछ पुरातनपंथी लोग स्त्री-शिक्षा के विरोधी हैं। वे आज भी स्त्री को ‘पराया धन’, ‘पाँव की जूती’ या ‘अनुत्पादक’ मानकर पुरुषों के समकक्ष नहीं आने देना चाहते। वे इस तथ्य को भूल जाते हैं कि स्त्रियाँ ही माँ बनकर बच्चों को पालती हैं और उनमें अच्छे संस्कार डालती हैं। माँ ही शिशु का प्रथम गुरु होती हैं। वही बच्चे को अपने कल्पित साँचे में ढालती हैं। वह उसे देवता भी बना सकती है और राक्षस भी । अतः, नारी को शिक्षित करने की बहुत आवश्यकता है।

प्राचीन काल में नारी – शिक्षा — प्राचीन काल में भारत में नारी शिक्षा की परम्परा थी। समाज में एक-से-एक शिक्षित नारियाँ थीं। मैत्रेयी, गार्गी आदि प्रसिद्ध उच्च-शिक्षित नारियाँ थीं। नारियों को पुरुष के समान अधिकार था। नारियाँ समाज में विशेष श्रद्धा के साथ सम्मानित थीं।

मध्य काल में नारी शिक्षा — यद्यपि भारत में नारी – शिक्षा संतोषजनक नहीं है, किन्तु आशाजनक अवश्य है। नारी स्वातंत्र्य आंदोलन ने नारी शिक्षा की गति को काफी आगे बढ़ाया है। सरकार और समाज के प्रयत्नों से नारी शिक्षा को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। भारत सरकार लड़कियों की शिक्षा को बी० ए० तक निःशुल्क करने का संकल्प व्यक्त कर चुकी है। ग्रामीण क्षेत्रों में स्त्री-शिक्षा के लिए अनेक प्रोत्साहन दिए जा रहे हैं। लड़कियों ने कला, चिकित्सा विज्ञान, वाणिज्य, प्रशासनिक सेवा सभी क्षेत्रों में लड़कों को जबर्दस्त चुनोती दी है। सी.बी.एस.ई. की परीक्षाओं में लड़कियों का उत्तीर्ण प्रतिशत लड़कों से अधिक रहा है।

आधुनिक काल में नारी शिक्षा- आज की नारी पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने की होड़ में इंजीनियरिंग, वाणिज्य, बैंकिंग, चिकित्सा, पुलिस आदि सेवाओं में जा रही हैं। पुलिस सेना के क्षेत्र में अवथक भागदौड़ करनी पड़ती है,, पर इन क्षेत्रों में भी महिलाओं ने अनेक कीर्त्तिमान स्थापित किए हैं। पायलट बनकर विमान उड़ाने में भी नारी किसी से पीछे नहीं हैं।

माँ भी, बेदी भी दोनों रूप में — स्त्री के कई रूप होते हैं। वह माँ के रूप में सबका पालन-पोषण करती है और बेटी के रूप में सबकी सेवा करती है।

कारण — नर और नारी समाज रूपी रथ के दो पहिए हैं। दोनों का समान रूप से शिक्षित होना आवश्यक है। समाज के कुछ पुरातनपंथी लोग स्त्री-शिक्षा के विरोधी हैं। वे आज भी स्त्री को ‘पराया धन’, ‘पाँव की जूती’ या ‘अनुत्पादक’ मानकर पुरुषों के समकक्ष नहीं आने देना चाहते। वे इस तथ्य को भूल जाते हैं कि स्त्रियाँ ही माँ बनकर बच्चों को पालती हैं और उनमें अच्छे संस्कार डालती हैं। माँ ही शिशु का प्रथम गुरु होती है। वही बच्चे को अपने कल्पित साँचे में ढालती है। वह उसे देवता भी बना सकती है और राक्षस भी। अतः नारी को शिक्षित करने की बहुत आवश्यकता है।

समानाधिकार — आज की नारी पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने की होड़ में इंजीनियरिंग, वाणिज्य, बैंकिंग, चिकित्सा, पुलिस आदि सेवाओं में जा रही हैं। पुलिस – सेना के क्षेत्र में अथक भागदौड़ करनी पड़ती है, पर इन क्षेत्रों में भी महिलाओं ने अनेक कीर्तिमान स्थापित किये हैं। पायलट बनकर विमान उड़ाने में भी नारी किसी से पीछे नहीं हैं।

सही दिशा – अब नारियाँ शिक्षित हो रही हैं। सरकारी स्तर पर भी काफी प्रयास किए जा रहे हैं। सती प्रथा, बाल-विवाह, पर्दा प्रथा, धनाभाव में बालिकाओं और किशोरियों का वृद्ध व्यक्तियों से बेमेल विवाह आदि समाप्तप्राय हैं और शिक्षा पर बल दिया जा रहा है। मुफ्त ऊँची शिक्षा, साइकिल, वस्त्र, छात्रवृत्ति और प्रोत्साहन राशि देकर सरकारी योजनाओं के माध्यम से नारी शिक्षा को बढ़ावा दिया जा रहा है। आज का शहर ही नहीं बल्कि छोटे शहर, कस्बे तथा गाँवों तक शिक्षा का अलख जगाया जा रहा है, जिसमें नारियों से कोई भेद नहीं किया जा रहा है।

उपसंहार — ये सभी काम तभी संभव है जब नारी शिक्षा के महत्त्व को समझा जाए और उसे बराबरी का अधिकार दिया जाए। हमें लड़कियों को शिक्षा देने में पीछे नहीं रहना चाहिए। यद्यपि समाज में जागृति आई है और लड़कियों का उत्तीर्णता प्रतिशत और गुणवत्ता प्रतिशत काफी बढ़ा है, पर अभी इसमें अधिक प्रयत्नों की आवश्यकता है। नारी में असीम भावनाएँ निहित हैं, जिन्हें वह शिक्षा के अभाव में प्रकट नहीं कर पाती है। अतः, हमें संकल्प करके नारी को शिक्षित बनाना ही है।