स्वच्छता – Swachhata

भूमिका — स्वच्छता में भगवान का निवास होता है और सृष्टि की सभी रचनाएँ भगवान के स्वरूप हैं। जहाँ स्वच्छता नहीं होती वहाँ विनाश, दुर्गंध तथा दुर्घटनाएँ अपना प्रभाव फैलाती हैं। स्वच्छता से जीवन का विकास होता है और अस्वच्छता से विनाश। इसलिए स्वच्छता जीवन की अनिवार्य आवश्यकता है ।

महत्व- स्वच्छता से व्यक्ति का स्वास्थ्य दृढ़ होता है तथा मन प्रफुल्लित रहता है। स्वच्छता रोग तथा मन की खिन्नता से दूर रखती है । यह वातावरण को आकर्षक बनाता है। इससे काम करने में सहजता आती है । स्वच्छता सृजनात्मक क्षमता पैदा करती है।

स्वच्छता परिवार से समाज तक — स्वच्छता परिवार और समाज में एक-दूसरे के बीच आकर्षण और लगाव पैदा करती है। परिवार ही समाज की कड़ी है, इसलिए स्वच्छता की शुरुआत परिवार से ही होती है । यदि परिवार स्वच्छ न हो तो समाज के स्वच्छ होने की कल्पना भी नहीं की जा सकती । अपने बिछावन, अध्ययन की सामग्री, घर, वस्त्र तथा शरीर को साफ – सुथरा और सजाकर रखना परिवार की. स्वच्छता है। सड़क, सार्वजनिक स्थान आदि पर जहाँ-तहाँ गन्दगी नहीं फैलाना, कूड़ा-कचरा कूड़ेदान में डालना समाज की स्वच्छता है ।

उपसंहार— स्वच्छता रखने के लिए व्यक्ति को हरेक काम का तरीका जानना चाहिए । यदि व्यक्ति अपनी दिनचर्या और काम सही ढंग से करे तो स्वच्छता स्वयं कायम रहेगी। सुबह सोकर उठने पर बिछावन को तत्काल सहेज कर रखना, अपने वस्त्रों को साफ-सुथरा करना तथा सहेज कर रखना, शाम – सुबह घर को बुहारना एवं कूड़े-कचरे को कूड़ेदान में डालना आदि सलीके का व्यवहार स्वच्छता बनाए रखता है|