विश्व मंदी में मुस्कुराता भारत – Vishva Mandi mein Muskurata Bharat

प्रस्तावना – भारतवर्ष 1948 में मानवाधिकार पर वैश्विक घोषणा – पत्र और 1966 के आर्थिक, सामाजिक और सांसारिक अधिकारों की अंतर्राष्ट्रीय संधि पर हस्ताक्षर करने वाला देश है। यह अन्तर्राष्ट्रीय प्रावधान पर्याप्त भोजन के अधिकार को लागू करने की बात करता है।

सतत् विकास पथ पर अग्रसर – सारा विश्व जहाँ आर्थिक मन्दी में है, विश्व में पेट्रोल की कीमत बढ़ती जा रही है, फलस्वरूप वस्तुओं की कीमतें भी बढ़ती जा रही हैं। फिर भी भारत में चौतरफा विकास हुआ है। वैश्विक मन्दी के बावजूद देश की अर्थव्यवस्था मजबूत हुई है। दूरसंचार, सुरक्षा का क्षेत्र, कृषि, उद्योग सभी क्षेत्रों में भारी उछाल आया है। निर्माण के क्षेत्र में स्थिरता आयी है। सरकार के सामने इसे बरकरार रखने की चुनौती है।

चादरानुरूप पाँव पसारने से बेअसर मंदी – भारत में मन्दी अपना चादरनुमा पाँव पसारने में लगी रही अर्थात् विश्व में मन्दी बढ़ती गई, पर भारत बेअसर रहा। यहाँ 11वें पंचवर्षीय योजनाकाल में 69 प्रतिशत विकास हुआ है। प्रति व्यक्ति आय बढ़ती गयी। वैश्विक अर्थव्यवस्था के प्रभाव से भारत में सेवाक्षेत्र का विस्तार हुआ है। इससे लोगों की क्रयशक्ति बढ़ी है। फलस्वरूप औद्योगिक उत्पादन कुप्रभावित नहीं हुआ है और उनकी माँग बनी रही। इसलिए, मंदी बेअसर रही।

उपसंहार—आर्थिक मन्दी के बावजूद चौतरफा विकास अपने-आपमें सफलता का ज्वलंत प्रमाण है।